पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार डॉ. मुश्ताक़ अहमद शाह
"सहज़" की एक कविता जिसका शीर्षक है “तुम भी संवर जाओ किसी दिन":
गलियों में तेरी क़दम रखूंगा न कभी मैं भी
अहद से अपने जो मुकर जाओ किसी दिन।
ये तिशनगी बुझने का नाम कहाँ लेती है।
आँखों से अपनी पिला जाओ किसी दिन।
आँखों के रास्ते दिल में ही छुपा रखा है।
आँखों मे खुद को देख जाओ किसी दिन।
सनम आ जाओ बातें करेंगे दिल की तुमसे।
आरज़ू है दुनिया को भूल जाओ किसी दिन।
ज़िक्र तेरा ही किया करता है ये मेरा दिल।
मासूम है इसकी भी सुन जाओ किसी दिन।
बहुत नाज़ सबको मेहबूब पे अपने अपने।
मेरी जान तुम भी संवर जाओ किसी दिन।
बरिशे मौसम भी आ करके अब जाने को है।
चले जाना आ तो जाओ "मुश्ताक़" किसी दिन।