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कविता: तुम भी चुप हम भी चुप (प्रिया पांडेय, सुल्तानपुर, उत्तर प्रदेश)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार प्रिया पांडेय की एक कविता  जिसका शीर्षक है “तुम भी चुप हम भी चुप”: 
 
अगर पोल मैंने तेरी खोल दी तो मियां लेने के देने तेरे पड़ जाएंगे।।
ना कहना हमें कुछ अगर बचना है तुम्हे वरना मेरी जुबां भी फिसल जाएगी।।
गर बचाना है तुमको तुम्हारे गुनाह तो राज को राज रखने का करो इंतजाम।।
कुछ मेरी तुम छुपा लो और मै तुम्हारी छुपा लूं राज दोनों के दिल में दफन हो जाएंगे।।
तुम मेरे जुल्म को और मै तेरे जुल्म को कुछ पलो  के लिए दूर रख आयेगे।।
थोड़े घड़ियाली आंसू बहा लेना तुम आके हम भी कुछ मरहम लगा जाएंगे।।
लूट लो इनको इतना ये जब तक ना कंगाल हो चल के  सट्टे पे सट्टा लगा आयेंगे।।
पीते जाओ गरीबों का सब खून तुम हम भी गिरवी जमीनें सब हड़प जाएंगे।।
लोन पे लोन इनको तुम दिलाते रहो ब्याज सारा हम लेके निकल जाएंगे।।
समाजसेवा का तुम कुछ दिखावा करो हम भी बनके विधायक चले आयेंगे।।
जीत कर इनका विश्वास हम एक दिन लाके फुटपाथ पे इनको कर जाएंगे।।
धर्म के नाम तुम आग फैलाओ जो हम भी दंगे पे दंगा खुब करवाएंगे।।
थोड़ा हिंसा करो और मारो मासूम हम भी मातम में आ शामिल हो जाएंगे।।