पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार सीमा गर्ग मंजरी की एक लघुकथा जिसका शीर्षक है “मृगतृष्णा":
"निखिल तुम कब तक लौटोगे ?
रात के ग्यारह बारह बजे तक अकेले बैठे तुम्हारा इन्तजार करते हुए थक जाती हूँ ।"
कार्यालय के लिए निकलते हुए हताश नेहा ने अपने पति से कहा ।
"आज तो देर हो जाएगी । महीने का अंत चल रहा है । इसीलिए कार्यालय में मुझे बहुत काम है ।"
निखिल ने सपाट शब्दों में जबाब दिया।
"इसके अलावा तुम्हें कुछ सूझता ही नहीं निखिल ।घड़ी दो घडी तुम्हारे संग बैठ कर मीठी बातों से वक्त बिताने के लिए मैं तरस गयी हूँ ।
अब तंग आ गयी हूँ मैं तो इस नीरस जिंदगी से ।"
आखिर नेहा के मन की पीड़ा जुबां पर चली आई थी ।
"मैं इसमें क्या कर सकता हूँ नेहा ?
तुम्हारी और बच्चों की खुशियाँ जुटाने के लिए ही तो भरपूर परिश्रम कर रहा हूँ!"
निखिल ने धैर्य संयम से नेहा को समझाने की कोशिश की थी ।
"लेकिन निखिल मुझे शाम के वक्त तुम्हारे बिना बहुत अकेलापन महसूस होता है। मैं नहीं जानती थी कि मेरी जिद हम दोनों को एक दूसरे से इतना दूर कर देगी ।"
अकेलापन झेलती नेहा की आँखों से घायल हृदय का मवाद फूट पड़ा ।
"तुम्हीं विलासी जीवन जीने की लालसा में रोज मुझसे लडाई करती थी।"
"एक दूसरे के बीच दूरी पैदा करने की और हमारे प्यारे रिश्तें में छोटे बड़े छेद करने की पहल भी तुमने ही की थी । घर की शांति भंग न होने पाए इसीलिए मैने स्वयं को काम में व्यस्त कर लिया!"
निखिल ने आज नेहा को उसके गलत आचरण का दुर्व्यवहार युक्त दर्पण दिखा दिया ।
सच्चाई की परतें खुलते ही नेहा की नजरें झुक गयीं!
अब नेहा शर्मिन्दा थी !
उसने पति पत्नी के आजीवन प्यार भरे रिश्तों में मृगतृष्णा से बने छेदों पर प्रेम की दिव्य सुई से स्नेहिल रफू करने में जरा देर नहीं लगाई ।
"निखिल!
"प्लीज ! मुझे क्षमा कर दो!"
"अब मुझे पति और पैसे का अंतर समझ में आ गया है।"
प्रेमाश्रु छलकाती नेहा तुरंत निखिल की बाँहों में जा समायी ।