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कविता: रोटी (ज्योति कुमारी, धनबाद, झारखंड)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार ज्योति कुमारी की एक कविता  जिसका शीर्षक है “रोटी”:
 
रोटी, ये दो शब्द आश है,
कीमत उनसे पूछो जरा,
जो इसके बिन निराश है,
भूखे बच्चों की करुण चित्कार,
विदीर्ण कर देती है,
हृदय को बार-बार,
पेट की आग बूझाने को,
परिवार की आश पूराने को,
कमरतोड़ मेहनत से,
दो वक्त की रोटी कमाता है,
अपनों की भूख मिटाता है,
हर्षित चेहरे देख फिर,
मन -ही-मन मुस्काता है,
खून पसीने बहाकर रोटी,
वह अपनो के लिए ही कमाता है।