पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार पूजा भूषण झा की एक कविता जिसका शीर्षक है “आहिस्ता आहिस्ता”:
आहिस्ता आहिस्ता
ही सही
अपनी मंजिल के
करीब एक दिन
पहुंच ही जाऊंगी मैं।
बहुत ठोकरे लगी
है
आगे और लगना बाकी
है
संघर्ष में तप,कर एक दिन
निखर ही जाऊंगी
मैं।
क्या हुआ अपनों
ने दर्द दिया?
संघर्षों से मैं
नहीं डरती
आहिस्ता आहिस्ता
ही सही
यह बुरा वक्त भी
खुशी में
तब्दील हो
जाएंगे।
मै हारूंगी नहीं
आखरी सांस तक
सोने में चमक
नहीं आती
जब तक वह तपता
नहीं
आहिस्ता आहिस्ता
तप कर
एक दिन चमक ही
जाऊंगी मैं।