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कविता: राधा का नाम होगा (महेन्द्र सिंह 'राज', मैढीं, चन्दौली, उत्तर प्रदेश)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
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यमुना किनारे आके मुझको पुकारे राधा,
मैं हूं  तेरी आधी अरु तूं  है  मेरा आधा।
कब  तक छिपा रहेगा ग्वालों के बीच में,
कर में मुरली लेकर आ जाओ मेरे कांधा।।
 
जन्मों से तप किया था तुमको ही मैंने साधा,
नहीं  बनूंगी जीवन  में तेरे  कभी भी बाधा।
लगता  तेरा मन  गैया अरु  ग्वाल  बाल में,
ग्वालों का मन है लगता जसुदा के लाल में।।
 
लकुटी व मुरली लेकर  ग्वालों  के साथ में,
कपड़े से बनी  कन्दुक  लेकर के हाथ  में ।
आगे  आगे  गैय्या  पीछे  हैं  चलते  ग्वाले,
उसके हैं  पीछे चलते  मुरली  बजाने वाले।।
 
दिन भर भटकता मधुवन गायों के संग में,
मैं  हार  रही  अपने  जीवन  के  जंग  में ।
कब तक तेरे  विरह  में तडपूंगी इस तरह,
शादी रचेगा भग के तूं रुक्मिणी के संग में।।
 
पीछा    छोडूं  तेरी  मैं  भी नहीं  हूं कम,
शादी  हुई    तुमसे  इसका नहीं  है गम।
रहलो रुक्मिणी संग उनकाभी श्याम होगा,
तेरे संग रुक्मिणी नहीं  राधा का नाम होगा।।