Welcome to the Official Web Portal of Lakshyavedh Group of Firms

कविता: हाय रे कोरोना ! (अंकुर सिंह, चंदवक, जौनपुर, उत्तर प्रदेश)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार अंकुर सिंह की एक कविता  जिसका शीर्षक है “हाय रे कोरोना !”: 

आज मन बड़ा व्याकुल है,
कल के चक्कर में आज आकुल हैं।
हाय रे कोरोना ! हाय रे कोरोना !
तेरे चक्कर में जगत पूरा शोकाकुल है।।
 
पूरे साल किए हम मेहनत,
ना बढ़ी तनिक भी तनख्वाह हमारी।
महंगाई इतनी बढ़ी हैं कि,
इतने पैसे में होत ना निर्वाह हमारी।।
 
हाय रे कोरोना ! हाय रे कोरोना !
बुहान शहर से चली जो हवा,
उस हवा से ना जाने,
बेरोजगार हुए कितने युवा।।
 
तारीख पक्की थी अपनी
प्रिय संग विवाह-बंधन की।
कैसे पूरी हो आस अपनी,
जब आजादी नहीं साधन की।।
 
हाय रे कोरोना ! हाय रे कोरोना !,
शिवालय, विद्यालय सब बन्द करवाया।
क्या अमेरिका, क्या इटली, क्या रूस,
सब जगह लॉकडाउन तूने करवाया।।
 
बड़ा डर मुझको लगता,
दिल ये जोर जोर धड़कता।
जब सुनता कोई आया परदेशी,
डर के मारे उनसे दूर से मिलता।।
 
हाय रे कोरोना ! हाय रे कोरोना !,
दोस्ती रिश्तेदारी सब भूलवाएं,
क्या होली , क्या गणेश चतुर्दशी,
सब हमसे घर में ही मनवाएं।।
 
बाहर काल खड़ा मुंह खोले,
घर में ही रहना तुम प्यारें ।
डगर कठिन है, रख भरोसा,
प्रभु दूर करेंगे कष्ट हमारे।।
 
हाय रे कोरोना ! हाय रे कोरोना !,
तुम हम सब से दूर ही रहना।
छोड़ मेरा देश तुम अब जाओ,
हाथ जोड़ करते हम ये अर्चना।।