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कविता: असली कमाई (अजीत कुमार, गुरारू, गया, बिहार)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार अजीत कुमार की एक कविता  जिसका शीर्षक है “असली कमाई”: 

तुम कमाये बहुत पर बचा कुछ नहीं,
हम गँवाये बहुत पर गया कुछ नहीं।
 
तुम दिखावे में सब कुछ लुटाते गये,
हम अभावों में सब कुछ बचाते गये।
तुम जिसकी धज्जियां उड़ाते गये,
हम उसी को गले से लगाते गये।
तुम कमाये ...........
 
तुम तो माया की नगरी में उड़ते रहे,
हम हकीकत की नगरी से जुड़ते रहे।
तुम हकीकत से नजरें चुराते रहे,
हम हकीकत से नजरें लड़ाते रहे।
तुम कमाये ...........
 
तुम कमाने में सबसे पिछड़ते गये,
साथ रहकर भी सबसे बिछड़ते गये।
शान - शौकत रईसी का आता रहा,
मगर बदले में संस्कार जाता रहा।
तुम कमाये ............
 
तुम तो असली कमाई कमाते नहीं,
जरूरतमंदों को तुम काम आते नहीं।
हम किसी को कभी दिल दुखाते नहीं,
दीन-दुखियों को स्वार्थ में रुलाते नहीं।
तुम कमाये ............