पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद
पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल
फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत
है। आज
आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार आकृति की एक कविता जिसका शीर्षक है “यादें तेरी”:
याद तेरी आई, याद तेरी आई।
हर वक़्त अक्स तेरी पाई,
याद तेरी आई, याद तेरी आई।
वो तेरी प्यार भरी बातें,
वो तेरे प्यार की
सौगातें,
वो तेरी
मुलाकातें,
वो तेरे साथ भीगी
बरसातें,
जहां कहीं देखूं, दिखे तेरी परछाई,
याद तेरी आई,याद तेरी आई।
खुद से नाराज़ हू,
तुझसे दूर होकर
भी पास हूं,
टूटा हुआ साज़
हूं,
अनकही, अनसुनी अंदाज़ हूं,
अस्क तो रूठे हुए
है,
ये तो धड़कनों की
आवाज़ है,
भीड़ में अकेले
है,
अकेले में तन्हाई,
याद तेरी आई, याद तेरी आई।
ना सोचा था कभी,
यूं आंसू आयेंगे
तुझे याद करके,
कभी अस्को को
छुपाकर,
कभी फरियाद करके,
अपने यादों को
क्यू नहीं ले गए साथ अपने,
वादा तो न करते
हाथों को लेकर हाथ अपने,
ना वादे निभाई, ना प्रेम गीत गाई,
याद तेरी आई, याद तेरी आई।
हर वक़्त अक्स तेरी पाई,
वो तेरी प्यार भरी बातें,
खुद से नाराज़ हू,
ना सोचा था कभी,