पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार वर्तिका अग्रवाल की एक कविता जिसका
शीर्षक है “ये दो हाथ”:
यही दो हाथ
परमात्मा को प्रणाम करने के लिए जुड़ते हैं ।
यही दो हाथ अंधेरे में पाप करने के लिए इक दूजे के होतें हैं ।
यही दो हाथ ईश्वर
को पुष्प समर्पित करने के लिए आतें हैं ।
यही दो हाथ भूखे के मुख से भोजन का निवाला छिन जातें हैं ।
यही दो हाथ सर्दी
में किसी काँपते को कंबल ओढ़ातें हैं ।
यही दो हाथ किसी मज़बूर के तन से कपड़ें उतारतें हैं ।
यही दो हाथ
अस्थियों की राख को गंगा में प्रवाहित कर मुक्ति दिलातें हैं ।
यही दो हाथ किसी बेबस पर चाबुक चलाते हैं ।
यही दो हाथ 'रामायण - गीता' वर्णन में पृष्ठ पलटतें जातें हैं ।
यही दो हाथ किसी अनाथ, लावारिस को ढकेल दूर भगातें हैं ।
यही दो हाथ किसी
मासूम बच्चे के सिर पर फेर स्नेह - वर्षा करवातें हैं ।
यही दो हाथ किसी के स्वाभिमान पर तमाचा मार जिंदगी भर को यादें छाप जातें हैं ।
यही दो हाथ
परमात्मा से दुआँ के लिए उठतें हैं ।
और यही दो हाथ किसी का क़त्ल करने में साथ होतें हैं ।
यही दो हाथ माया के बंधन में बँधवातें हैं ।
यही दो हाथ जो बंधन से मुक्ति दिलवातें हैं ।
यही दो हाथ अंधेरे में पाप करने के लिए इक दूजे के होतें हैं ।
यही दो हाथ भूखे के मुख से भोजन का निवाला छिन जातें हैं ।
यही दो हाथ किसी मज़बूर के तन से कपड़ें उतारतें हैं ।
यही दो हाथ किसी बेबस पर चाबुक चलाते हैं ।
यही दो हाथ किसी अनाथ, लावारिस को ढकेल दूर भगातें हैं ।
यही दो हाथ किसी के स्वाभिमान पर तमाचा मार जिंदगी भर को यादें छाप जातें हैं ।
और यही दो हाथ किसी का क़त्ल करने में साथ होतें हैं ।
यही दो हाथ जो बंधन से मुक्ति दिलवातें हैं ।