पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार रागिनी प्रसाद की एक कविता जिसका
शीर्षक है “देवर”:
रिश्ते अनेक, सम्बोधन अनेक
सबके तात्पर्य अनेक, पर भावना एक
रिश्ता एक मधुर, माधुर्य भाभी - देवर का
नवविवाहिता का था वधू गृह प्रवेश
साथ में संग - संग थें, प्राणेश
"दउरे" में अलंकृत पैर से वर - वधू का आंगन में प्रवेश का हुआ श्री गणेश
वधू के पायल - बिछीया महावर रहित पांव में तनिक आ गया आवेश
तनिक लहंगे में पायल की कड़ी फंस पद का हुआ लड़खड़ाने में समावेश
अभी सोच में पड़े ही प्राणेश
तभी एक मधुर सम्बोधन का हुआ प्रवेश
शब्द था "भाभी "जिसका नववधू के ह्दय में हुआ प्रवेश
"भाऽऽभी "सम्भल कर करो प्रवेश
"भाभी" शब्द के सम्मोहन में वधू विमोहित,
बाल और यौवन काल के रूप में भावनाओं के रूप लिए अनेक
फिर भाभी के पद संचालन का हुआ सीधा - समावेश
"देवर" के रूप में एक मित्र मिला "भाभी की सम्भावनाऐं बढ गई अनेक