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कविता: अबला नहीं सबला (सोनम कुमारी, मधुपुर, झारखंड)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार सोनम कुमारी  की एक कविता  जिसका शीर्षक है “अबला नहीं सबला”:
 
 
बेटियों को ही मजबूत बनाना होगा।
परेशानियों से खुद को स्वयं ही बचना होगा।
कोमलता के आवरण  को छोड़कर,
कठोर आवरण पहनाना होगा।
क्यों इंतजार रहेगा उसको,
स्व को ही सक्षम बनाना होगा।
हम चेतेंगे जग संभलेगा,
पहले घर की ही बहु-बेटियों से नवीन पहल करवाना होगा।
लेलकारेगी झाँसी की रानी,
रणचंडी-सी दुर्गा बनकर,
कहाँ बचेगा वो महिषासुर,
कहाँ छुपेगा वो दुष्कर्मी दुष्कर।
मन को बुलंद बनाना होगा,
बेटी में आत्मविश्वास जगाना होगा,
विरोधियों के विरुद्ध शस्त्र बनाना होगा।
फिर ना होगी ये नृसंश वारदातें,
ना अस्मिता की लाज लूटेंगी,
ना माताएं इंसाफ माँगेंगी,
ना समाज बैठ डंका पिटेगा।
जब बेटी बदलेगी,जग बदलेगा।
समाज की रूपरेखा बदलेगी।