पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार डॉ• राजेन्द्र मिलन की एक कविता जिसका
शीर्षक है “सलाह”:
दर्द का एहसास तो होने दो
ज़रा सी पीड़ा हुई कि हाय दैया हाय मैया
यार ये कैसा बेतुका रवैया
दर्द की अनुभूति का तो लो जायजा
सहो थोड़े दिनों रखो ऐसा कायदा
दवा-दारू अब खो चुकी है हया
पैसे की हवस में लापता होगई है दुआ और दया
इसीलिए मैं तो दर्द को पालता हूं
जब वह सिर पर चढ़कर बोलने लगे तो उसे ऊपर से नीचे तक खंगालता हूं
चौकन्ना होकर भांपता हूं
दादी का नुस्खा लेकर डांटता हूं चल गई चवन्नी तो भली
और नहीं इस पर भी दाल गली
तब करता हूं विसमिल्ला
निजी या सरकारी इलाज
वैसे दोनों ही हैं बेलिहाज
पहले करता हूं एहसास तगडा़
अनुभूति की करिश्माई का रगडा़
यार अपनी तो यही चल्लमचल्ला
भाई दर्द का होने तो दो एहसास
भाईचारे का बढ़ने दो विश्वास
उम्रदराजी का अनुभव बांटता हूं
निर्धन लाचार की महंगाई को छांटता हूं
किए-अनकिए को डांटता हूं
शुक्रिया उस नीली छतरी वाले का
कि उसने बहुत कमतर
दुख मेरे हिस्से में रखे
ओह ये है क्या कम बेहतर ?
दर्द का एहसास तो होने दो
ज़रा सी पीड़ा हुई कि हाय दैया हाय मैया
यार ये कैसा बेतुका रवैया
दर्द की अनुभूति का तो लो जायजा
सहो थोड़े दिनों रखो ऐसा कायदा
दवा-दारू अब खो चुकी है हया
पैसे की हवस में लापता होगई है दुआ और दया
इसीलिए मैं तो दर्द को पालता हूं
जब वह सिर पर चढ़कर बोलने लगे तो उसे ऊपर से नीचे तक खंगालता हूं
चौकन्ना होकर भांपता हूं
दादी का नुस्खा लेकर डांटता हूं चल गई चवन्नी तो भली
और नहीं इस पर भी दाल गली
तब करता हूं विसमिल्ला
निजी या सरकारी इलाज
वैसे दोनों ही हैं बेलिहाज
पहले करता हूं एहसास तगडा़
अनुभूति की करिश्माई का रगडा़
यार अपनी तो यही चल्लमचल्ला
भाई दर्द का होने तो दो एहसास
भाईचारे का बढ़ने दो विश्वास
उम्रदराजी का अनुभव बांटता हूं
निर्धन लाचार की महंगाई को छांटता हूं
किए-अनकिए को डांटता हूं
शुक्रिया उस नीली छतरी वाले का
कि उसने बहुत कमतर
दुख मेरे हिस्से में रखे
ओह ये है क्या कम बेहतर ?