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कविता: कमज़ोर नहीं है नारी (बंदना पंचाल, अहमदाबाद, गुजरात)

 
पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार बंदना पंचाल की एक कविता  जिसका शीर्षक है “कमज़ोर नहीं है नारी”: 

कमज़ोर कहां तुम नारी
अब खड़ग तुझे उठाना होगा,
अपनी रक्षा की खातिर
तुझे खुद ही आगे आना होगा।
 
कितने अत्याचार सहे
तूने अपने इस जीवन में,
चुनर ओढ़ मर्यादा की
ख्वाब छिपा लिए मन में।
 
कमज़ोर और  लाचारी को
शब्द कोश से हटाना होगा।
अपनी रक्षा की खातिर
तुझे खुद ही आगे आना होगा।
 
कर संकल्प तू आगे से
अब ना सहेगी अत्याचार,
आंख उठाकर देखे कोई
रणचंडी बन कर दे वार।
 
फूल समझ कर नोच रहे जो
अंगार बन उन्हें जलाना होगा,
अपनी रक्षा की खातिर नारी
तुझे खुद ही आगे आना होगा।
 
अब नहीं बनना है सीता
न द्रौपदी तुझे बनना है,
बन जा तू लक्ष्मी बाई
अधिकार के लिए लड़ना है।
 
तोड़ बंधनों की बेड़ियां
विकराल रूप दिखाना होगा
अपनी रक्षा की खातिर नारी
तुझे खुद ही आगे आना होगा।