पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार मोना सिंह “मोनालिशा” की एक कविता जिसका
शीर्षक है “मैं सूरज की साथी हूँ”:
तुम्हें जो लग रहा है ना ...
चांद अटका है मेरी खिड़की पर,
पर क्या हुआ, जहाँ भी अटका हो ..
मेरी भी खिडकी की ऱौनक तो बढ़ा रहा है।
ऐ चांद मत सोचना कि तु मुझे जला रहा है
क्यों जलूं मै तुमसे ...
पता है मुझे, तु उधार की रोशनी से जगमगा रहा है।
पर इक राज की बात, आज तुमको बताती हूँ।
तुझे पाने की ललक नहीं,
तेरी प्रभा निश्चित शीतलता बरसाती है,
नग्मों में गज़लों मे तुम लुभाते हो,
बिना सुरज के कब नज़र आते हो।
अच्छी लगती है तुम्हारी हर कलायें,
पर सूरज का, जलकर जीवन भरने की अदा .....
मुझे ज्यादा पसंद आते है।
जो रूप किसी को भा जाए तुम्हारा,
क्यों तरसाते हो इतना,
तुम्हारे यही नख़रे मुझे नहीं भाती है।
मुझे तो सूरज के तौर तरीके ही पसंद आते हैं।
हम आएँ ना आएँ,
धरा भी उसकी किरणों को चखकर मग्न हो जाती है
पंछियों की मधुर चहचहाट से,
पर मेरा सूरज कभी भाव नहीं खाता है।
अब बताओ कुछ गलत कह रही थी !
कि मुझे सूरज ही लुभाता है।