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कविता: शिव ॐ शिव (विनय चौरे, बम्हन गाँव खुर्द, होशंगाबाद, मध्यप्रदेश)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार विनय चौरे की एक कविता  जिसका शीर्षक है “शिव ॐ शिव”:

उसके भीतर ही सृष्टि समाती है।

वो भीतर भी है और बाहर भी है।

 

हमें कोई परा शक्ति चलाती है।

ये तो माना है सारे संसार ने।

 

सूर्य थकता नहीं चाँद गिरता नहीं।

इतनी ऊर्जा कहा से चली आती है।

 

ऐसे प्रमाण कहीं पर मिलते नहीं।

पाँच तत्वों में उसका दखल ना हो।

 

सारा ब्रह्माण्ड अपने में समेटे हुये।

परा शक्ति की महिमा की सीमा नहीं।

 

चित्र किसने शिला पर उकेरे है।

शिव से पहले का कुछ भी मिलता नहीं।

 

शिव ही साकार है शिव ही निराकार है।

प्रेमी प्रेत को समझना बस के बहार है।