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कविता: खामोशी (अनीता तिवारी, सिलीगुड़ी, पश्चिम बंगाल)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार अनीता तिवारी की एक कविता  जिसका शीर्षक है “खामोशी”: 

मंज़र है खामोशी का ?
या खामोश से हम ही हैं ....
आसपास तो देखो कितना शोर है
बारिश की झनझनाहट,
चिड़ियों का चहचहाना,
हवाओं को तो सुनो ना,
उनमें भी सरसराहट का जोर है .....
मंज़र नहीं खामोशी का,
खामोश से हम ही हैं
जरूरी तो नहीं
जुबां से ही हो शब्दों का वास्ता
सुनो कभी आंखों की जुबां
कह जाती है कई दास्तां .....
खामोश रहना इतना आशा तो नहीं
कोई दर्द तो पलता है
चुपके - से दिल में
तन्हा ही जीते हैं ऐसे लोग
कहां देखने को मिलते हैं महफ़िल में .....
खामोशी की भी अपनी
एक भाषा होती है
हर कोई नहीं समझता
बड़ी निराशा होती है
बड़ी मृदुल सी भाषा है
हर कोई समझ ले
इतना भी नहीं आसां है ......
मंज़र नहीं ख़ामोशी का
खामोश से हम ही हैं
....