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कविता :: सुनहरी धूप ... सी जिंदगी || अर्चना होता, सम्बलपुर, ओड़िशा ||

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार अर्चना होता की एक कविता  जिसका शीर्षक है “सुनहरी धूप ... सी जिंदगी”: 

सुबह की सुनहरी धूप सी धानी है जिंदगी
पत्थर है, कभी फूल है,पानी है जिंदगी
 
रोके ना रुक सकी है, किसी भी पड़ाव पर
बचपन है, जवानी है, बुढ़ापा है जिंदगी
 
इंद्रधनुष के रंगों सी सुनहरी है जिंदगी
राग है, बैराग है, सौगात हैं, ये जिंदगी
 
कहते हैं पांच गांव की रानी है जिंदगी
बिटिया गरीब मां की सयानी है जिंदगी
 
हर कोई चाहता है पालू इसे मैं
पर्वत शिखर से भी ऊंची  है ये जिंदगी
 
डूब सको तो डूब जाओ इसकी गहराईयों में
दलदल में कूदकर ही पा सकेंगे जिंदगी
 
सच बात सभी को लगती है बुरी
जिद छोड़ दे नादान इसमें है भलाई
 
लगती नए बसंत सी हर बार ये नयी
वैसे तो मौत से भी पुरानी है जिंदगी
 
चुभती है, चीरती है, जलाती है, आग सी
लगती कबीर की वाणी है जिंदगी
 
रंगों, छंदो, में समाई सी है जिंदगी
कर्म के फल पर ही मिलती है जिंदगी
 
फूलों की पंखुड़ियों से सुनहरी है जिंदगी
चांद की चांदनी सी शीतल है जिंदगी
 
उपवन के फूलों सी महकती है जिंदगी
छेड़ो तो मुरली की धुन सी सुरीली है जिन्दगी ।