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कविता: दगा करना आया नहीं (इंदु सिंह, नरसिंहपुर, मध्यप्रदेश)

 
पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार इंदु सिंह की एक कविता  जिसका शीर्षक है “दगा करना आया नहीं”:
 
लिखते - लिखते स्याही खत्म हो गई
कहानी का अंतिम सिरा हाथ आया नहीं
बोलते - बोलते लफ्ज़ भी सारे चूक गये
फिर भी बात मन की कोई समझ पाया नहीं ।
 
कहते - कहते जुबां भी थक गई
बात का असर  तब भी नजर आया नहीं
भरते - भरते रंग सारे फीके पड़ गये
तस्वीर में अक्स तेरा पर, उभर पाया नहीं ।
 
देखते - देखते आंखें पथरा गयी
लौटकर मगर, मुसाफिर फिर आया नहीं
सीखते-सीखते उम्र तमाम हो गई
जीने का सलीका कमबख्त आया नहीं ।
 
पढ़ते - पढ़ते किताबें तमाम हुई सारी
अर्थ जीवन का लेकिन, समझ आया नहीं
मिला के देखते रहे हर एक चेहरे से
मन में बसा वो अक्स कहीं नजर आया नहीं ।
 
ले चुके अब तक न जाने कितने जन्म
मन अब तलक मोह - माया से हट पाया नहीं
खा चुके धोखा न जाने कितनी दफा
दगा किसी से करना मगर, हमको आया नहीं ।