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कविता: मध्यमवर्ग (उत्तीर्णा धर, मालदा, पश्चिम बंगाल)


पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार उत्तीर्णा धर की एक कविता  जिसका शीर्षक है “मध्यमवर्ग”:

 
उच्च वर्ग समान बनने की चाहत,
निम्न वर्गों के कष्टों से होते आहत।
जी हां! हम  मध्य वर्ग के  है लोग,
जो ना दुख झेलते न करते सुख भोग।
बस चिंताओं में डूबे रहते हैं,
अपने आप से ही कहते हैं।
सरकारी नौकरी की तलाश में हम रहते हैं,
रोजगार के फिराक में भटकते हैं ।
जी हां! हम मध्यवर्ग के हैं लोग,
जो ना दुख झेलते  न करते सुख भोग।
सपने तो बहुत ऊंचे होते हैं,
लेकिन पैसे संभाल कर खर्च हम करते हैं।
यह पैसा ही तो है जिसको जुटाने में,
दिन-रात हमारा निकल ही जाते।
जी हां! हम मध्य वर्ग के हैं लोग,
जो ना दुख झेलते न करते सुख भोग।
कर्ज लेते कहीं तो चुकाने की चिंता रहती,
कर्ज देते किसी को तो लेने की चिंता सताती।
परिवार की सुख में ही सुख है हमारी,
और कोई सुख न हमको भाती।
जी हां! हम मध्य वर्ग के हैं लोग,
जो ना दुख झेलते न करते सुख भोग।
 

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