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कविता: मां की रोटी में प्यार की खुशबू (डॉ. मीना कुमारी परिहार, पटना, बिहार)


पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार “डॉ. मीना कुमारी परिहार की एक कविता  जिसका शीर्षक है “मां की रोटी में प्यार की  खुशबू”:

 
मां के हाथों  की बनी रोटियां
बेहतरीन स्वादिष्ट  लगती रोटियां
मां  के हाथों  की खुशबू से
बढ़ जाती  है मिठास ये रोटियां
जो मन को सुखद एहसास कराती रोटियां
असीम प्यार भरा होता है  रोटियां
मां की  ममता भरी होती हैं रोटियां
अपने कोमल हाथों से  बेलती रोटियां
मां के चेहरे पर मुस्कान  लाती रोटियां
वो मां के हाथों की रोटियां
लकड़ी के चूल्हे में  पकाकर
अमूल्य बना देती  मां रोटियां
छिपा रहता है  मां का अनोखा
प्यार 
वो डांटकर खिलाना याद आता है रोटियां
मेरे ना खाने से चिन्ता करना  याद कराती रोटियां
कभी जब जिक्र होता मां के हाथों की रोटी का
यादें फिर जुबां में घुला जाती रोटियां
रोटी तो आज भी बनता है पर
आज  खिलानेवाली  वो हाथ नहीं
बस मन नहीं भरता इस पेट का क्या..?
वो तो भर ही जाता है
पर अखर जाता है मां के हाथ की
रोटियां