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कहानी: सदभावना (सन्धया पाण्डेय, हरदा, मध्यप्रदेश)

 

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार “सन्धया पाण्डेय की एक कहानी  जिसका शीर्षक है “सदभावना":

एकबार राष्ट्रीय त्योहार पर महिला वृद्धाश्रम जाकर वहां रहने वाली व्रद्ध महिलाओं से मुलाकात की। बहुत सी महिलाएं बाहर बग़ीचे में बैठी मिल गयी। सब अलग अलग वेशभूषा में थीं और अपने मनपसन्द कार्य कर रही थी। कोई भगवान की बत्ती बना रही थीकोई gardening में व्यस्त थीकोई गजरा बना रही थी, कोई मैगज़ीन पढ़ रही थी। एक महिला कागज़ के तिरंगे झण्डे बना रही थीं। एक आंटी सबको पानी पिला रही थी।

मैने उनसे कहा मुझे आप लोगों का कक्ष देखना हैआपके बारे में जानना है, आप लोग कैसे रहते होक्याकरते हो सबकुछ देखना है।

उन्होंने कहा "आओ बेटा" वो आंटी मुझे एक हॉल में ले गयी।

ये बहुत बड़ा है हॉल था। उसमें अंदर घुसते से ही सोफा लगा था। बीचोंबीच एक डाइनिंग टेबल था। और दीवार के चारों और चार पलंग लगे थे। पलँग के सहारे सके एक अलमारी रखी थी।

मैने पास जाकर सबकुछ बड़ी बारीकी से देखा।एक पलंग के साइड में अलमारी जे ऊपर राम कृष्ण की तस्वीर लगी थी और रामायण ,गीता रखी थी। दूसरे पलंग की पास वाली अलमारी पर जीसस लगे थे और बाईबिल रखी थी। तीसरे पलंग के पास कुरानशरीफ रखी थी। और चौथे पलंग के पास गुरूग्रंथसाहिब बिराजे थे।

में यह देखकर आवाक रह जाती हूं।तबतक सभी आंटी वहाँ आ जाती है।में उनसे पूछती हु आप चारों यहीं रहती हैं। उन्होंने कहा 'हा'  उनके सम्मिलित स्वर एकता का  प्रतीक था। में निरीक्षण तो कर चुकी थी पर मन में एक संदेह था।

बड़े डरते डरते प्रश्न किया।  आपलोग बड़े प्रेम से साथ साथ रहते हो आंटी?  

कोई शिकवा , शिकायत, धर्म, मज़हब का विवादकुछ भी नही?

एक आंटी बोली, नही बेटा। 

कैसा शिकवा और कैसी शिकायत।    जैसे बचपन का कोई धर्म नहीं होतावैसे बुढ़ापे का भी कोई धर्म नही होता। हमलोग यहाँ पर एकदूसरे की मदद करके खुशी खशी रहती है, ना किसी  को किसी परिवार से या समाज से अपेक्षा।  और नाही किसी   धर्म की उपेक्षा।

हमसब इस उम्र में एक ही गाड़ी में सवार हो गई है। मंजिल भी एक ही है।देखो कौन पहले पहुंचता है। धर्मनिरपेक्षता  की सच्ची तस्वीर पहली बार देखी थी मैने।

अरे जहाँ हमारा परिवारसमाज अपने बुजुर्गो को साथ नही रखना चाहता वहाँ आज भी हमारे बुजुर्ग हमको जोड़कर एकता की मिसाल कायम करना चाहते हैं।

उन्होंने  बताया कि वो सब महिलाएं शहीदों के परिवार से है। किसी के पिता,तो किसी के पति, किसी का भाईतो किसी का बेटा फ़ौज में रहा है। और उनलोगों ने अपने अपने मज़हब से ऊपर उठकर देशसेवा की है फिर हमलोग यहां पर क्यों लड़े।

आज पन्द्रह अगस्त के राष्ट्रीय पर्व पर ये सभी महिलाएं शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित करने के साथ साथ देश के उज्ज्वल भविष्य और अमन शांति की कामना करती है।

तिरंगे झंडे बनाकर शाला में बच्चों को वितरित करने जाती है। ताकि बच्चों में भी राष्ट्रीय भावना जगे। सबकुछ देशपर न्योछावर करने के बाद भी ये लोग यहाँ पर बन्धनों से मुक्त है। इनमें देशप्रेम के साथ साथ एक दूसरे के प्रति आदर ,सम्मान, सद्भभावना अभी भी जीवित है।