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कविता: सबसे लाचार प्राणी (जितेन्द्र 'कबीर', चम्बा, हिमाचल प्रदेश)


पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार “जितेन्द्र 'कबीर'” की एक कविता  जिसका शीर्षक है “सबसे लाचार प्राणी”:

 
अच्छा कोई काम करे
अगर उनका दल
तब तो जायज है फिर भी
प्रशंसा के अतिरेक में डूबी उनकी वाणी,
लेकिन काम बुरा हो तब भी
विरोधियों पर चढ़ें वो लेकर दाना-पानी,
वास्तव में राजनीतिक दलों के प्रवक्ता
और उनके कट्टर समर्थक
हैं सृष्टि के सबसे लाचार प्राणी।
 
अपने आकाओं के चश्में से हैं देखते
वो सारी दुनिया को,
सच मानते बस उनकी बातें
बाकियों की रद्द करते कहकर झूठी कहानी,
दयनीय बड़ी हो जाती है हालत उनकी
जब गलत होते हुए भी
मानते नहीं गलती कभी अपनी जबानी,
वास्तव में राजनीतिक दलों के प्रवक्ता
और उनके कट्टर समर्थक
हैं सृष्टि के सबसे लाचार प्राणी।