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कविता: शहर (सुनीता कुमारी, पूर्णियाँ, बिहार)


पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार “सुनीता कुमारी की एक कविता  जिसका शीर्षक है “शहर”:

 
ईट और कंक्रीट का शहर,
पाषाण ह्रदय,
पाषाण लोग ।
गली और चौराहों में,
बिखरे  कांच के टुकड़े,
घायल होते सब ?
घायल होते  लोग?
लहू की जगह पानी
भावशून्य पाषाण  लोग?
 
ईट और कंक्रीट का शहर ,
पाषाण ह्रदय
पाषाण लोग ।
भागे जा रहे,
भागे जा रहे?
पकड़ में नहीं आ रहे?
रुकना नहीं ,
भागना है ।
भाग भाग कर जीना है ?
जिनके पीछे भाग रहे हैं
वो भी भाग रहा है?
 
ईट और कंक्रीट का शहर
पाषाण ह्रदय
पाषाण लोग
नित नई सभाओं में जाना,
भीड़ भाड़
मस्ती तराना?
अपने पन को तरसते लोग?
अकेले और अकेले लोग ।
 
ईट और  कंक्रीट का शहर
पाषाण ह्रदय
पाषाण लोग
भव्य अट्टालिकाए
भीड़ भाड़ परिचारिकाए?
तन्हा मजबूर ,
परेशान लोग ?
ईट और कंक्रीट का शहर,
पाषाण ह्रदय 
पाषाण लोग।