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कविता: जग में शिक्षक कहलाता है (ऋषि तिवारी, चकरी, सिवान, बिहार)


पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार “ऋषि तिवारी की एक कविता  जिसका शीर्षक है “जग में शिक्षक कहलाता है”:
 
नव निर्माण का निर्माता,
नव पथ का जो निर्माण करे,
जो राह दिखाए जीने का,
शिक्षा का जो सम्मान करे
जो नूतन अंकुरों को नित नित,
नया ज्ञान सिखलाता हो,
पोषित कर एक पौधे को,
जो वृक्ष नया कर जाता हो
जिसके कारण एक बच्चा भी,
सम्राटों का सम्राट बना,
जिसके निर्देशों पर चलकर,
यह भारत वर्ष विराट बना
एक शिक्षक के हीं मेहनत से,
अर्जुन अर्जुन बन जाता है,
जिसके रथ को दौड़ाने को,
स्वयं विधाता आता है
जो अज्ञानता को दूर हटाकर,
जग में ज्ञान प्रकाश फैलाता हैं,
सही मायने में तब कोई,
जग में शिक्षक कहलाता है