पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार “शिखा मिंज” की एक शादरी कविता जिसका शीर्षक है “मुरझाल कुसुम”:
रोज दिन बेहाने
काम धाम काइर के
जावोना मोय स्कुल
लेइ के होंठ में मुस्कान
और केस झाइर के।
गुरु जी जब पढ़ाएला
चाइल जाओन मोय चांद पे
कहेल उ आइज कर समय में
लड़का हो या लड़की
केहो केकरो से कम नहीं
मन कर तन कर
टूटल फूटल छोड़ी छौवा मोय
सुइन के बात उकर
बुइन लेवोन घोंसला आपन
बाया चराई जाइसन।
तेकर जाओना मोय घर हंसी खुशी
खेलते-कुदते डहर-डहर
मिलेना डहरें में
काकी,मोसी,दादी मन
कहेन मुस्कात उ मन
का करबे माइ्या?
कहोन मोय फिर हंसते
बनबू मोय भी उ दादा लखै
डाक्टर नी तो इंजीनियर।
घर पुगते हाथ मुंह धोते
होई जायेल सांझ
खाते अउर काम करते।
तेकर बैठोना मोय
किताब धाइर के
बुलाएला मां मोके
"आओ तनिक खाना बनाएक सीख ले।"
कहोन मोय इखन रहेक दे
इकर ले बहुत टाइम आहे
तब कहेल मोर मां
"छोड़ी हेकिस"
का करबे इतना पाइढ़ लिख के?
भीतरे भीतरे बदरी गरजेल,
मोड़ी गाइड़ के।
छोड़ी हकोन का करबू
पाइढ़ लिख के!