पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार “वीणा गुप्त” की एक कविता जिसका शीर्षक है “जिंदगी सुंदर लगी”:
दायरों से निकले बाहर, ज़िंदगी सुंदर लगी।
जब कुएँ से झाँका बाहर, ज़िंदगी समंदर लगी।
नेमतें दीं कितनी उसने, हसीन है कितना जहां।
नूर कुदरत का जब देखा, ज़िंदगी मंजर लगी।
तेरे ही अंदर उजाला, मन में अपने झाँक तू
प्यास बुझ जाएगी तेरी, हसरत सभी मिटने लगी।
हरेक दिल में वो समाया, बात इतनी जान जा।
पाएगा सुकून तू, तब ज़िंदगी मंदिर लगी।
सब हैं उसके, वो है सबका, मरम जो यह जान पाया।
इंसानियत को चाहा जब, आशिकी जन्नत लगी।
सद्भाव और भाईचारे की, जोत अब मन में जगी।
मंजिल एक, राहें अनेक, बात यही सबने कही।
नेकी कर, ये सच्ची पूजा, इबादत यही सुंदर लगी।
जब कुएँ से झाँका बाहर,