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कहानी: कहाँ से शुरू कहाँ पे खतम (सोनम कुमारी, मधुपुर, झारखंड)


पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार “सोनम कुमारी की एक कहानी  जिसका शीर्षक है “कहाँ से शुरू कहाँ पे खतम ": 

    वक्त अपनी गति से बढ़ रहा।बचपन की नादानियों को काफी पीछे छोड़ते हुए हम युवावस्था में कदम रख चुके है। जीवन की आप-धापी निरंतर बढ़ रही, जीवन मे नित नवीन अच्छे-बुरे अनुभवों का ज्ञान हो रहा। जीवन की एकांकी को माता-पिता द्वारा परिणय सूत्र मे बाँधकर उन्होंने अपने जिम्मेदारियों को पूरा किया। हम जीवन के इस नवीन मोड़ पर आगे बढ़े। रास्ते बदलते गए, मंजिल भी समय के साथ परिवर्तित होती रही। अनावश्यक ही बोलने की आदत बढ़ी। यह स्त्रियों की माने तो बड़बोलेपन नहीं, अत्यधिक फिक्र की मानसिकता हैं, जिसे आदमी बिना मतलब ज्यादा बोलने की बीमारी कह देते हैं। याद आती हैं इन उपमाओं के उपरांत कभी हम भी हामी भरा करते थे; इन वाक्यांशों में।

    कितने मतलबी हैं अपने! जो औरतों की भावनाओं को उसकी कमजोरी का नाम दे देते हैं। यही सोचते हुए; राधा गुमसुम-सी अपने भूत में बरबस ही गोते लगाने लगी।

    क्या जीवन था-ना लोगों की चिंता, ना अनजान-सा बोझ। ना कुछ करने से पहले अनुमति की आवश्यकता। बस बेधड़क जीवन जीना। अनुमति की आवश्यकता तभी परती, जब बात बननेवाली नहीं होती।

    पुनः माँ-माँ मैं दोस्तों के साथ पार्टी करने बाहर जा रहा हूँ मेरा इंतजार मत करना .... शब्दों के साथ राधा की तन्द्रा टूटी वह पुनः अपने वर्तमान का दिग्दर्शन करती है। जहाँ बच्चे नाबालिक है और बाहर ही अपनी खुशी को मनाने का तर्जी देते हैं। पति महोदय भी अपने कारोबार में व्यस्त और बाकी समय अपने मोबाइल से रु-ब-रु होने में लगा देते हैं।

    घर में अकेली राधा अपनी पुरानी संस्मरणों को याद कर मन मसोज़ कर रह जाती हैं।

    अचानक जन्मदिन के उपलक्ष्य पर भी बाहर के दोस्तों के साथ अपने खुशी को मनाना राधा के मन को ठेस पहुँचा। राधा ने भी सोचा कि क्यों ना अपनी ममता का आंचल उन बच्चों को दे जो इन सब सुखों से महरूम रहे हैं।

    वो ढाढ़स के साथ पूर्ण मनोबल से उठी और अपने जूट के बैग को ले आगे बढ़ी। अतः अन्तोगत्वा भी मन के जीते जीत को राधा ने अपना लिया।