पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार “बिवेक कामी” की एक कविता जिसका शीर्षक है “गोरखा हुं मैं”:
कोई और नहीं गोरखा हुं मैं.....
इतिहास के पन्नों पर
मेरे वीरों की कहानी है
मेरे बेटो ने भारत के लिए बलि दी
अपनी जवानी है।
जब बात भारत के
सम्मान की बात आए तो
दूश्मनों के लिए उनका काल हुं मैं
कोई और नहीं गोरखा हुं मैं.....
मेरे लोग हैं,
मेरे ज़ुबां पर
भारत माता की जय है....
ऐसा ना सोचें कोई
हम विदेशी हैं
यह न कहना कोई
मुंह से भारत माता की जय
और दिल में तिरंगा है,
निकाली अपनी टोली हैं,
काली आयो-आयो गोर्खाली
से भर रही मेरी झोली हैं,
भारत में विदेशी होने का कंलक
अब हमें मिटाना है.
कोई और नहीं गोरखा हुं मैं... ।