लेखाशास्त्र (कक्षा 11 सेमेस्टर II) अध्याय 8: गैर-लाभकारी संस्थाओं का वित्तीय विवरण
प्रश्न 1. अमुनाफाभोगी संस्था (या "मुनाफे के लिए नहीं" संस्था या अलाभकारी संस्था) किसे कहते हैं? उदाहरण दो।
उत्तर: जो सभी गैर-व्यावसायिक स्थायी संस्थाएँ निःस्वार्थ भाव से जनता की सेवा के उद्देश्य से स्थापित होती हैं और जिनका उद्देश्य लाभ कमाना नहीं होता, उन संस्थाओं को अमुनाफाभोगी संस्था (या "मुनाफे के लिए नहीं" संस्था या अलाभकारी संस्था) कहा जाता है।
प्रश्न 2. अलाभकारी संस्था (या "मुनाफे के लिए नहीं" संस्था) की विशेषताएँ लिखो।
उत्तर: अलाभकारी संस्था की विशेषताएँ इस प्रकार हैं –
(क) ये संस्थाएँ निःस्वार्थ भाव से जनता की निरंतर सेवा करने के उद्देश्य से स्थायी रूप से स्थापित की जाती हैं।
(ख) इनमें कालानुक्रमिक या आवधिक लेखा-पद्धति का पालन किया जाता है।
(ग) इस प्रकार की संस्थाओं का कोई निश्चित मालिक नहीं होता, इसलिए पूँजी नहीं होती; परंतु पूँजी के स्थान पर इनके पास सामान्य कोष या पूँजीगत कोष होता है।
(घ) इनके वित्तीय परिणाम का निर्धारण करने हेतु प्रत्येक वर्ष आय-व्यय खाता और वर्ष के अंत में वित्तीय स्थिति ज्ञात करने हेतु बैलेंस शीट तैयार की जाती है।
प्रश्न 3. अलाभकारी संस्था (या "मुनाफे के लिए नहीं" संस्था) और मुनाफा-साधक संस्था के बीच अंतर लिखो।
उत्तर: अलाभकारी संस्था और मुनाफा-साधक संस्था के बीच अंतर इस प्रकार है –
(क)
इनका मुख्य उद्देश्य सेवा या जनकल्याण कार्य होता है, लाभ कमाना नहीं।
मुनाफा-साधक संस्थाओं का मुख्य उद्देश्य लाभ कमाना होता है, यद्यपि वे समाज की सेवा में भी योगदान दे सकती हैं।
(ख)
इनमें कोई मालिक-पक्ष नहीं होता। संस्था का अधिशेष या शुद्ध आय संस्था की आवश्यकता हेतु संचित की जाती है।
इनमें मालिक-पक्ष होता है और संस्था का अधिशेष या शुद्ध लाभ मालिकों को प्राप्त होता है।
(ग)
ऐसी संस्थाएँ प्रायः लेखा-काल के अंत में नकद खाते से प्राप्ति-भुगतान खाता तैयार करती हैं।
ऐसी संस्थाएँ लेखा-काल के अंत में नकद खाते से प्राप्ति-भुगतान खाता तैयार नहीं करतीं।
(घ)
यदि कुल आय कुल व्यय से अधिक हो तो अधिशेष और यदि कम हो तो घाटा कहलाता है।
यदि कुल आय कुल व्यय से अधिक हो तो शुद्ध लाभ और यदि कम हो तो शुद्ध हानि कहलाती है।
(ङ)
इनके वित्तीय परिणाम ज्ञात करने हेतु प्रत्येक वर्ष आय-व्यय खाता तथा वर्षांत में वित्तीय स्थिति ज्ञात करने हेतु बैलेंस शीट तैयार की जाती है।
लाभ-साधक संस्थाओं का अंतिम लेखा पाँच चरणों में विभाजित होता है – उत्पादन खाता, क्रय-विक्रय खाता, लाभ-हानि खाता, लाभ-हानि वितरण खाता और बैलेंस शीट।
प्रश्न 4. प्राप्ति और भुगतान खाता (Receipts & Payments Account) किसे कहते हैं?
या,
नकद आदान-प्रदान खाता किसे कहते हैं?
उत्तर: किसी निश्चित लेखा-काल की सभी नकद प्राप्तियों और भुगतानों को प्रारंभिक तथा अंतिम नकद शेष सहित वर्गीकृत रूप में व्यवस्थित करके लेखा-काल के अंत में जो संक्षिप्त विवरण तैयार किया जाता है, उसे प्राप्ति और भुगतान खाता या नकद आदान-प्रदान खाता कहा जाता है।
प्रश्न 5. प्राप्ति-भुगतान खाते की विशेषताएँ लिखो।
उत्तर: प्राप्ति-भुगतान खाते की विशेषताएँ इस प्रकार हैं –
(क) इस खाते के डेबिट (बाएँ) पक्ष में लेखा-काल की सभी नकद प्राप्तियाँ और क्रेडिट (दाएँ) पक्ष में सभी नकद भुगतान दर्ज किए जाते हैं।
(ख) डेबिट पक्ष में सबसे पहले प्रारंभिक नकद राशि और क्रेडिट पक्ष में सबसे अंत में अंतिम नकद राशि दिखाई जाती है।
(ग) इसमें पूँजीगत और राजस्वगत दोनों प्रकार के नकद लेन-देन सम्मिलित होते हैं।
(घ) यह परिसंपत्ति खाते की श्रेणी में आता है।
(ङ) यह दोहरी प्रविष्टि पद्धति का भाग नहीं है – केवल एक विवरण मात्र है।
(च) यह किसी निश्चित लेखा-काल के अंतिम दिन तैयार किया जाता है।
प्रश्न 6. आदान-प्रदान खाते (या प्राप्ति और भुगतान खाते) के लाभ लिखो।
उत्तर: इसके लाभ इस प्रकार हैं –
(क) इससे विभिन्न मदों में प्राप्ति और भुगतान की राशि अलग-अलग रूप में एक नज़र में जानी जा सकती है।
(ख) इससे लेखा-काल के अंत में हाथ में उपलब्ध नकद राशि ज्ञात होती है तथा वास्तविक नकद से मिलान किया जा सकता है।
(ग) इसके माध्यम से नकद-पुस्तक की गणितीय शुद्धता की जाँच की जा सकती है।
(घ) यह संस्था के आय-व्यय खाते की तैयारी में सहायक होता है।
प्रश्न 7. आदान-प्रदान खाते (या प्राप्ति और भुगतान खाते) की हानियाँ लिखो।
उत्तर: इसके नुकसान इस प्रकार हैं –
(क) यह खाता नकद-आधारित होने के कारण इससे देय-प्राप्य-आधारित लेखांकन की जानकारी नहीं मिलती।
(ख) गैर-नकद लेन-देन से संबंधित कोई जानकारी इससे प्राप्त नहीं होती।
(ग) किसी विशेष खाते के अंतर्गत प्राप्ति या भुगतान का विस्तृत विवरण ज्ञात नहीं होता।
(घ) इस खाते से संस्था के अधिशेष या घाटे की मात्रा ज्ञात नहीं होती।
प्रश्न 8. नकद पुस्तक और प्राप्ति एवं भुगतान खाता में अंतर लिखिए।
या,
नकद आदान-प्रदान खाता और नकद पुस्तक में अंतर लिखिए।
उत्तर: नकद पुस्तक और प्राप्ति एवं भुगतान खाता में अंतर इस प्रकार हैं:
क)
कोई भी नकद लेन-देन होते ही तुरंत इसमें दर्ज किया जाता है और यह पुस्तक पूरे वर्ष चलती रहती है।
लेखांकन अवधि के अंत में नकद विवरण से लेन-देन इसमें दर्ज किए जाते हैं।
ख)
इससे प्रतिदिन का नकद शेष ज्ञात किया जा सकता है।
इससे प्रतिदिन का नकद शेष ज्ञात नहीं किया जा सकता।
ग)
यह लाभ-रहित संस्थाएं और व्यावसायिक संस्थाएं दोनों तैयार करती हैं।
यह केवल लाभ-रहित संस्थाएं तैयार करती हैं।
घ)
यह एक चल खाता है।
यह एक कालांतर या समापन खाता है।
ङ)
इसे तैयार करना अनिवार्य है।
इसे तैयार करना अनिवार्य नहीं है।
प्रश्न 9. आय-व्यय खाता या "Income & Expenditure Account" क्या है? इसके विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर: लाभ-रहित संस्थाओं के वित्तीय परिणाम ज्ञात करने या आय-व्यय की स्थिति निर्धारित करने के लिए जो खाता तैयार किया जाता है, उसे आय-व्यय खाता कहा जाता है।
आय-व्यय खाता की विशेषताएँ:
क) यह एक नाममात्र खाता है।
ख) इसके डेबिट पक्ष पर व्यय और क्रेडिट पक्ष पर आय दिखाई जाती है।
ग) यह खाता लेखांकन अवधि के अंत में तैयार किया जाता है, इसलिए यह एक कालांतर या समापन खाता है।
घ) इस खाते में कोई प्रारंभिक शेष नहीं होता।
ङ) इस खाते में क्रेडिट शेष होने पर इसे अधिशेष और डेबिट शेष होने पर इसे घाटा कहते हैं।
प्रश्न 10. आय-व्यय खाता के दो लाभ लिखिए।
उत्तर: आय-व्यय खाता के दो लाभ हैं:
क) इस खाते के माध्यम से लाभ-रहित संस्था की किसी विशेष लेखांकन अवधि के वित्तीय परिणाम ज्ञात किए जाते हैं।
ख) इस खाते पर निर्भर करते हुए किसी लाभ-रहित संस्था की वित्तीय स्थिति जानने के लिए वित्तीय विवरण तैयार किए जाते हैं।
प्रश्न 11. आय-व्यय खाता और लाभ-हानि खाता में अंतर लिखिए।
उत्तर: आय-व्यय खाता और लाभ-हानि खाता में अंतर इस प्रकार हैं:
क)
लाभ-रहित संस्था यह खाता तैयार करती है।
लाभ कमाने वाली या व्यावसायिक संस्था यह खाता तैयार करती है।
ख)
यह खाता किसी प्रारंभिक शेष से शुरू नहीं होता।
यह खाता खरीद-बिक्री खाते के शेष यानी कुल लाभ या कुल हानि से शुरू होता है।
ग)
इस खाते का अंतिम शेष अधिशेष या घाटा कहलाता है।
इस खाते का अंतिम शेष शुद्ध लाभ या शुद्ध हानि कहलाता है।
घ)
इस खाते के माध्यम से निर्धारित अधिशेष सदस्यों में बांटा नहीं जा सकता।
इस खाते से प्राप्त शुद्ध लाभ का पूरा या आंशिक भाग मालिकों में वितरित किया जाता है।
प्रश्न 12. आदान-प्रदान खाता (या प्राप्ति एवं भुगतान खाता) और आय-व्यय खाता में अंतर लिखिए।
उत्तर: आदान-प्रदान खाता और आय-व्यय खाता में अंतर इस प्रकार हैं:
क)
यह संपत्ति खाता है।
यह नाममात्र खाता है।
ख)
इसमें लाभ-आधारित और पूंजीगत दोनों प्रकार के लेन-देन दर्ज होते हैं।
इसमें केवल लाभ-आधारित लेन-देन दर्ज होते हैं।
ग)
इसके डेबिट पक्ष पर 'प्राप्ति' और क्रेडिट पक्ष पर 'भुगतान' लिखा जाता है।
इसके डेबिट पक्ष पर 'लाभ-आधारित व्यय' और क्रेडिट पक्ष पर 'लाभ-आधारित आय' लिखा जाता है।
घ)
इसके प्रारंभ में नकद और बैंक का शेष होता है।
इसके प्रारंभ में कोई प्रारंभिक शेष नहीं होता।
ङ)
इसे तैयार करने में कोई बाध्यता नहीं है।
इसे तैयार करना अनिवार्य है।
च)
इसके अंतिम शेष को अगले लेखांकन अवधि के प्राप्ति-भुगतान खाता में स्थानांतरित किया जाता है।
इसके अंतिम शेष को संस्था के सामान्य कोष या पूंजी कोष में स्थानांतरित किया जाता है।
प्रश्न 13. प्राप्ति और आय में अंतर लिखिए।
उत्तर: प्राप्ति और आय में अंतर इस प्रकार हैं:
क)
प्राप्ति हमेशा नकद कोष में वृद्धि करती है।
आय नकद कोष में वृद्धि कर सकती है या नहीं भी कर सकती।
ख)
यह नकद आधार पर निर्धारित होती है।
यह देय-प्राप्ति आधार पर निर्धारित होती है।
ग)
यह लाभ-आधारित और पूंजीगत दोनों प्रकार की हो सकती है।
यह हमेशा लाभ-आधारित होती है।
घ)
प्राप्ति बाहरी देयता उत्पन्न कर सकती है।
आय कभी बाहरी देयता उत्पन्न नहीं कर सकती।
प्रश्न 14. भुगतान और व्यय में अंतर लिखें।
उत्तर: भुगतान और व्यय के अंतर इस प्रकार हैं:
क)
यह नकद आधारित होता है।
यह प्राप्य-देय आधारित होता है।
ख)
यह लाभजन्य और पूंजीगत दोनों प्रकार का हो सकता है।
यह हमेशा लाभजन्य होता है।
ग)
भुगतान को अंतिम लेखा में शामिल नहीं किया जाता।
व्यय को अवश्य अंतिम लेखा में शामिल किया जाता है।
घ)
भुगतान से लाभ पर सीधे प्रभाव नहीं पड़ता।
व्यय से लाभ पर सीधे प्रभाव पड़ता है।
प्रश्न 15. आय-व्यय खाता तैयार करने में किस आधार का पालन किया जाता है?
उत्तर: आय-व्यय खाता तैयार करने में प्राप्य-देय आधार का पालन किया जाता है।
प्रश्न 16. किसी गैर-लाभकारी संस्था के आय के स्रोत क्या हैं?
उत्तर: गैर-लाभकारी संस्था के आय स्रोत हैं:
चंदा; आजीवन सदस्यता शुल्क; प्रवेश शुल्क; विशेष चंदा; दान; वसीयत के माध्यम से प्राप्त संपत्ति; सरकारी अनुदान या सब्सिडी आदि।
प्रश्न 17. किसी गैर-लाभकारी संस्था का अंतिम लेखा तैयार करते समय दान कैसे दिखाया जाएगा?
उत्तर: जब गैर-लाभकारी संस्था की संचालन नियमावली अनुसार दान का कोई हिस्सा पूंजी माना जाता है, तो उसे Capital Fund में स्थानांतरित किया जाता है। बिना किसी विशेष उद्देश्य के प्राप्त दान को आमतौर पर लाभजन्य आय माना जाता है और आय-व्यय खाता के क्रेडिट में दर्ज किया जाता है।
प्रश्न 18. किसी "लाभ के लिए नहीं" संस्था में अंतिम लेखा तैयार करते समय "प्रवेश शुल्क" कैसे दिखाया जाएगा?
उत्तर: जब संचालन नियमावली अनुसार प्रवेश शुल्क को पूंजी माना जाता है, तो उसे Capital Fund में स्थानांतरित किया जाता है। यदि इसे लाभजन्य आय माना जाता है, तो इसे आय-व्यय खाता के क्रेडिट में दर्ज किया जाता है।
प्रश्न 19. आदान-प्रदान खाता किसका सारांश है?
या, प्राप्ति और भुगतान खाता किसका सारांश है?
उत्तर: यह नकद प्राप्ति और नकद भुगतान का सारांश है, यानी नकद बही की।
प्रश्न 20. गैर-लाभकारी संस्था का अधिशेष या घाटा किस खाते में जमा किया जाता है?
उत्तर: गैर-लाभकारी संस्था का अधिशेष या घाटा Capital Fund खाते में जमा किया जाता है।
प्रश्न 21. Capital Fund क्या है?
उत्तर: किसी गैर-लाभकारी संस्था के लेखा वर्ष के अंत में कुल संपत्ति और कुल देयताओं के अंतर को Capital Fund कहा जाता है।
प्रश्न 22. रिक्त स्थान भरें:
क) अगले वर्ष के लिए अग्रिम चंदा है ______।
ख) जिस पद्धति से आदान-प्रदान खाता तैयार किया जाता है वह है ______।
ग) आय-व्यय खाता का क्रेडिट शेष है ______।
घ) इस वर्ष का वर्तमान अग्रिम चंदा है ______।
उत्तर:
क) एक देयता।
ख) नकद आधार पर।
ग) अधिशेष।
घ) एक संपत्ति।
प्रश्न 23. किसी क्लब के सदस्य 50 हैं और प्रत्येक का वार्षिक चंदा 200 रुपये। यदि किसी वर्ष 10 सदस्यों का चंदा बकाया है, तो प्राप्य-देय आधार पर उस वर्ष का सदस्य चंदा आय में कितना दर्ज होगा?
उत्तर: 10,000 रुपये।
प्रश्न 24. किसी क्लब के कुल सदस्य 1,100 हैं। प्रत्येक सदस्य 100 रुपये वार्षिक चंदा देता है। प्रारंभिक और अंतिम बकाया चंदा क्रमशः 1,00,000 रुपये और 2,00,000 रुपये है। उस वर्ष आय-व्यय खाते में सदस्य चंदा कितना क्रेडिट होगा?
उत्तर: 11,00,000 रुपये।
प्रश्न 25. इस वर्ष 25,000 रुपये चंदा प्राप्त हुआ, जिसमें 1,000 रुपये अगले वर्ष के लिए हैं। इस वर्ष का बकाया चंदा 2,000 रुपये है। इस वर्ष आय-व्यय खाते में कितनी राशि क्रेडिट होगी?
उत्तर: 26,000 रुपये।
प्रश्न 26. 01/04/2019 को किसी क्लब का अग्रिम चंदा 5,000 रुपये और 31/03/2020 को 7,000 रुपये था। वर्ष 2019-20 में प्राप्त चंदा 48,000 रुपये है। उस वर्ष आय-व्यय खाते में कितनी राशि दर्ज होगी?
उत्तर: 46,000 रुपये।
प्रश्न 27. 01/04/2019 को किसी संस्था का बकाया घर का किराया 10,000 रुपये था। 31/03/2020 को अग्रिम दिया गया किराया 5,000 रुपये था। वर्ष 2019-20 में नकद भुगतान 30,000 रुपये हुआ। प्राप्य-देय आधार पर घर के किराए के खर्च के रूप में आय-व्यय खाते में कितनी राशि दर्ज होगी?
उत्तर: 15,000 रुपये।

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