पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार सीमा गर्ग मंजरी की एक कहानी जिसका शीर्षक है “अनजाना भय":
आजकल सावन मास चलने के कारण मौसम में कभी भी अचानक बदलाव हो जाता है ।
आज जब घर से निकली थी तो चटक धूप खिल रही थी परन्तु दोपहर बाद बादलों के संग काली घटायें घिर आईं और शाम से ही मूसलाधार बरसात होने लगी । छुट्टी होने पर जब कार्यालय से निकली थी तो हल्की बूंदाबांदी सी थी ।
सोच रही थी कि जल्दी ही घर पहुंच कर गर्मागर्म मसाले वाली चाय बनाकर पीऊँगी।
मेरे बस स्टाप पर पहुँचने से पहले ही झमाझम बरसात शुरू हो गयी ।
बस स्टाप पर दो तीन लोग भी बरसात के रुकने की प्रतीक्षा कर रहे थे ।
उसमें दो बुजुर्ग जो कि अधेडावस्था के थे । मैने ध्यान से उनकी ओर देखा तो उनके सफेद बाल और चेहरे पर उमर के अनुभव की रेखायें गहराती नजर आ रही थीं । वे भी मौसम खुलने का इंतजार कर रहे थे और बाहर सड़क की ओर देख रहे थे ।
पास ही एक सूटेड-बूटेड नवजवान युवक भी था ।वह एक हाथ में काला बैग और दूसरे हाथ में काले रंग की बंद छतरी लिये हुआ था ।
मैने उसकी ओर देखा तो वह आंखों से हल्के से मुस्कुराया ।
पता नहीं मुझे उसकी पनीली सी बड़ी चौड़ी आँखों में कुछ अजब हलचल सी लगी । उसे देखकर ऐसा लग रहा था कि इसकी गहरी आंखों में जरुर कोई राज छिपा है ।
काफी देर तक हम सभी मौन रहें और बारिश के रुकने की प्रतीक्षा करते रहे ।
बारिश हल्की होने पर वह हौले से मुस्कुराया और संजीदगी से मुझसे कहने लगा कि --
"तेज बरसात अब तो कुछ कम हो गयी है।"
"मौसम बहुत खराब है और आप अकेली हो ।चारों ओर काला अंधेरा घिर आया है ।"
ऐसे में अपराधियों के द्वारा दुर्घटना करने की आशंका रहती है । "
"मानवीयता के नाते आओ, मैं आपको घर छोड़ देता हूँ ।"
मैने अचकचा कर उसकी ओर देखा अचानक उसका सामने पड़ कर ऐसा कहना मेरे मन में कई आशंका भरे सवाल खड़े कर रहा था ।
उसने मुझसे कहा कि --
"मेरी ओर से आप बेफिक्र रहें और मुझे अपना भाई समझें ।"
ऐसा कहते हुये उसकी आंखें छलछला आई ।
"भाई होने के नाते ही मैं एक बहन को सुरक्षित उसके घर तक छोड़ना चाहता हूँ । जहाँ आपके परिवार वाले आपकी प्रतीक्षा करते होंगे ।"
उसकी आँखों में भर आये आंसू मुझसे छिपे नहीं रह सके थे ।
मैं पहले ही दो घन्टे लेट हो चुकी थी। मन में थोड़ा सा खटका था किन्तु गहराती अंधेरी रात और तेज बारिश न बढ जाये ऐसा मन में सोच स्वयं को संयत कर बिना ना नुकुर किये उसके साथ चल पड़ी ।
अभी भी तेज ठंडी हवाओं के साथ रिमझिम बारिश का कहर जारी था ।
उसके हाथों में खुली छतरी बार बार पीछे घूमती और उड़ने लगती तब वह उसे और कसकर पकड़ लेता ।
इतनी बारिश और ठंडे मौसम में उसके साथ चलते हुए घबराहट के साथ मुझे पसीना आ रहा था ।
वह शायद मेरे मन की कुलबुलाहट समझ गया थोड़ा सा दूर हटकर उसने छतरी मेरे सिर के ऊपर कर दी ।
और शांत गम्भीर आवाज में मुझे अपने जीवन की करूण कहानी सुनाने लगा । तब उसने बताया कि --
" ऐसी ही एक अंधेरी रात में किसी गुण्डे मवाली ने मेरी बहन का बलात्कार किया था और गला घोंट कर उसकी हत्या कर दी । "
"उस दिन बहुत तेज बारिश थी! "कार्यालय से लौटते समय देर हो जाने के कारण मेरी निडर बहन अकेली ही घर जाने के लिए निकल पड़ी थी ।
रास्ते में किसी शराबी मवाली ने खराब मौसम निर्जन सड़क और अंधेरे का फायदा उठाया ।"
कातिल ने पीछे से उसके सिर पर वार करके उसे बेहोश कर दिया । फिर कमीने ने मेरी बहन की इज्जत तो लूटी ही पहचान लिये जाने के डर से उसकी हत्या भी कर दी ।"
बोलते-बोलते उसका गला रुंध गया । उसकी आँखों में तैरते हुए आँसुओं की सच्चाई जानकर मुझे अपनी सोच पर शर्म आने लगी ।
मैं मन में सोच रही थी कि "आजकल के समय में अच्छे संस्कारी युवक कहां मिलते हैं । "
"जो दूसरे की बहन बेटियों को अपनी बहन बेटी समझते हैं। और निस्वार्थ कर्तव्य भावना का सार्थक उदाहरण समाज के सामने पेश करते हैं ।"
यदि आज हमारे समाज में संवेदनशील जाग्रत ऐसे दस प्रतिशत युवक सजग हों तो फिर बहन बेटियों के साथ दुष्कर्म करने की हिम्मत भी कोई नहीं जुटा सकेगा । और ना ही कोई उनकी जान के साथ खिलवाड़ कर सकेगा।"
उसकी हृदयस्पर्शी कहानी सुनकर मेरा मन अतिशय करुणा से भीगने लगा । अब मेरे मन में उसके लिये आदर सम्मान की भावना जागृत हो चुकी थी।
इसलिए मैने विनम्रता से उसे कहा कि -
"ये देखिए आप तो बुरी तरह से भीग चुके हैं ।"
"मेरा घर सामने ही है ।"
"आइये ! आप एक कप कॉफी पीकर जाइयेगा ।"
ऐसा कहकर मैने घर के दरवाज़े पर लगी घंटी दबा दी।
घननननन! घननननन !! घंटी की आवाज जोर से गूंजने लगी ।
लेकिन जब तक मेरा दरवाजा खुलता तब तक फिर कभी आने की बात कहकर वह फरिश्ता आगे बढ़ गया था।