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कविता: मनमोहिनी (प्रियंका पांडेय त्रिपाठी, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश)

 


पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार प्रियंका पांडेय त्रिपाठी की एक कविता  जिसका शीर्षक है “मनमोहिनी ":

मन को छू ले ऐसी है काया।

ऐसे ही फलती रहे देती है छाया।।

 

तुझे बार बार मै देखूं।

मन ही मन पुलकित हो जाऊं।।

 

तु जूही चम्पा चमेली।

झूमे अमवा की डाली।।

 

नदियां बरखा तेरी सहेली।

हवाओं संग खेले अठखेलि।।

 

तु जीवन दान देती।

सुधा रस बरसाती।।

 

हे मनमोहिनी तुझे!

कभी कलम से पिरोऊ।

कभी चित्रो से सवारू।

ऐसे ही फलती रहे देती है छाया।।