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लघुकथा: मंगल (सीमा गर्ग मंजरी, मेरठ, उत्तर प्रदेश)


 पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार सीमा गर्ग मंजरी की एक लघुकथा  जिसका शीर्षक है “मंगल":

 सब पर लाड दुलार लुटानेवाली दादीमाँ का देहान्त होने के कारण घर में अजीब सी खामोशी पसरी थी । 

पण्डितजी के कथनानुसार एक साल तक जब तक उनकी बरसी होगी तब तक घर में कोई भी मंगल कार्य नहीं होगा ।

उनकी मृत्यु के समय दादीमाँ की सबसे लाडली पौत्र वधू तीन माह की गर्भवती थी ।

छ: महीने बाद उसने गोल मटोल रूई के फाहे जैसी रेशम के बालों वाली बेहद खूबसूरत नन्हीं-सी कन्या रत्न को जन्म दिया । 

उस कन्या के जन्म पश्चात खुशियों को दर किनार कर मौन शांत रहने वाले घर के सदस्यों के मन में उल्लास की उमंगें भर गयी ।घर में हँसी ठहाके और चहल-पहल छा गयी । 

उसके नाक नक्श रंग रूप देखकर सबने उसे दादीमाँ का प्रतिरूप माना । और खूब धूमधाम के साथ घर लाकर जन्मोत्सव मनाया ।

पूरा घर मंगल गीतों की मधुरिम आवाज से गूँज उठा ।