पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद
पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार डॉ. विशाल सिंह 'वात्सल्य' की एक कहानी जिसका
शीर्षक है “प्रेमपत्र":
"भाई क्या कर रहे हो?" संजय ने राहुल से पूछा। "कुछ नहीं भैया, बस कुछ लिख रहा था, आप बताओ क्या काम है" राहुल ने कहा। "अरे भाई मेरा एक काम करोगे?"..... "हाँ बोलो" राहुल ने संजय से कहा। "एक प्रेम पत्र लिखना है तुम्हे।"....." किसके लिए?" राहुल ने बात काटी। "तुम्हारी होने बाली भाभी के लिए, पर अंग्रेजी में लिखना...प्रभाव अच्छा पड़ना चाहिए।"
"फिर तो किसी और को खोजो
राहुल बोला।".... "क्या हुआ? संजय ने गुस्से से देखा, एक काम नहीं कर सकते क्या भाई का?" ...."अरे दो करवाओ
भैया पर हिंदी में लिखूंगा।" ..."क्यों अंग्रेजी नहीं आती क्या तुम्हे, क्या पड़ते हो?" संजय ने जल्दी से कहा। "आती है भैया पर
मुझे हिंदी भाषा में आंनद आता है। किसी बात को कहना हो या किसी को कुछ बताना हो तो
हिंदी में अभिव्यक्ति जो होती है उसकी बात ही कुछ और है। दिल की बात सीधी दिल पर
असर करती है। ऐसा लगता है जैसे बिना सावन के बारिश आ रही हो और हम उसमें भीग रहे है और जैसे मदमस्त मयूर पंख फैला कर नृत्य कर रहा
हो या फिर किसी उपवन में ना जाने कितनी चिड़िया चहचहा रही हो, आप विश्वास तो रखो मेरे पर भाभी को अच्छा लगेगा।"
"अच्छा सच कह रहे हो, ऐसा होगा? दिन में भी बड़े अच्छे सपने देखते हो तुम।" संजय ने मुस्करा कर कहा। "हाँ भैया, तभी तो कविता लिख और कह पाता हूँ। ये जो भाषा है ना हिंदी मेरे रोम रोम में बसती है। अजब सा रोमांच शरीर में दौड़ने लगता है।" राहुल ने कहा। ..."ठीक है तो, फिर लिख दो हिंदी में ही" संजय ने राहुल से कहा। "तो बताओ भैया क्या कहना है भाभी को" राहुल ने कहा। "कहना क्या है बस अरमान लिख दो दिल के, ..... कितने सुन्दर प्रेम पत्र लिखतीं हैं वो, तो उत्तर भी अच्छा होना चाहिए ना।".... कुछ देर बाद राहुल बोला "लो भैया तैयार है आपका प्रेम पत्र।" संजय ने जैसे ही पड़ना शुरू किया वो तो आसमान में उड़ने लगा और बोला "अरे वाह भाई तुमने तो कमाल कर दिया। इसे पड़कर तुम्हारी भाभी खुश हो जाएगी।" .... "पर भैया एक बात है, भाभी तो जान जाएगी की ये मैने लिखा है।" राहुल ने कहा तो संजय उसकी शक्ल की ओर देखने लगा। "हाँ भैया, भाभी जो तुम्हे प्रेमपत्र भेजती है वो भी मैं ही तो लिखता हूँ" और ऐसा कहकर राहुल जोरो से हसने लग जाता है और संजय का चेहरा देखने वाला था। "क्या हुआ भैया झ्टका लगा क्या?" और अब संजय भी राहुल के साथ हसने लगता है।
"भाई क्या कर रहे हो?" संजय ने राहुल से पूछा। "कुछ नहीं भैया, बस कुछ लिख रहा था, आप बताओ क्या काम है" राहुल ने कहा। "अरे भाई मेरा एक काम करोगे?"..... "हाँ बोलो" राहुल ने संजय से कहा। "एक प्रेम पत्र लिखना है तुम्हे।"....." किसके लिए?" राहुल ने बात काटी। "तुम्हारी होने बाली भाभी के लिए, पर अंग्रेजी में लिखना...प्रभाव अच्छा पड़ना चाहिए।"
"अच्छा सच कह रहे हो, ऐसा होगा? दिन में भी बड़े अच्छे सपने देखते हो तुम।" संजय ने मुस्करा कर कहा। "हाँ भैया, तभी तो कविता लिख और कह पाता हूँ। ये जो भाषा है ना हिंदी मेरे रोम रोम में बसती है। अजब सा रोमांच शरीर में दौड़ने लगता है।" राहुल ने कहा। ..."ठीक है तो, फिर लिख दो हिंदी में ही" संजय ने राहुल से कहा। "तो बताओ भैया क्या कहना है भाभी को" राहुल ने कहा। "कहना क्या है बस अरमान लिख दो दिल के, ..... कितने सुन्दर प्रेम पत्र लिखतीं हैं वो, तो उत्तर भी अच्छा होना चाहिए ना।".... कुछ देर बाद राहुल बोला "लो भैया तैयार है आपका प्रेम पत्र।" संजय ने जैसे ही पड़ना शुरू किया वो तो आसमान में उड़ने लगा और बोला "अरे वाह भाई तुमने तो कमाल कर दिया। इसे पड़कर तुम्हारी भाभी खुश हो जाएगी।" .... "पर भैया एक बात है, भाभी तो जान जाएगी की ये मैने लिखा है।" राहुल ने कहा तो संजय उसकी शक्ल की ओर देखने लगा। "हाँ भैया, भाभी जो तुम्हे प्रेमपत्र भेजती है वो भी मैं ही तो लिखता हूँ" और ऐसा कहकर राहुल जोरो से हसने लग जाता है और संजय का चेहरा देखने वाला था। "क्या हुआ भैया झ्टका लगा क्या?" और अब संजय भी राहुल के साथ हसने लगता है।