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कविता: दादाजी जैसा प्यारा वह बूढ़ा पीपल ! (रविकान्त सनाढ्य, भीलवाड़ा, राजस्थान)

 पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार रविकान्त सनाढ्य की एक कविता  जिसका शीर्षक है “दादाजी जैसा प्यारा वह बूढ़ा पीपल !":

मेरे गाँव में एक

पुरानी बावड़ी के निकट

खड़ा हुआ है

लंबा- ऊँचा-सा

एक  बूढ़ा  पीपल !

 

लोगों से सुनते आए हैं

भूत रहता है

पीपल के पेड़ में !

 

जाता नहीं

रात में अकेले

उसके नीचे

एक भी जन !

जबकि सही यह है कि

वह देता है हमें

भरपूर आक्सीजन !

 

हमारी सं स्कृति में

बहुत मान्यता है

अश्वत्थ की  !

पुण्य-वृक्ष मानकर

होता है इसका पूजन !

 

पीपल के पत्ते

रात के सन्नाटे में

हिलते हैं ।

खड़-खड़ करते हुए

उछलते हैं ।

 

करते हैं उल्लास और

उमंग की अभिव्यक्ति !

 

सूखते  जाते हैं यह बताने को ,

कर रहे हैं हम पुराने पत्ते

नये पत्तों का स्वागत !

 

बूढ़े दादा का

दुलार है यह

जोर-शोर से !

 

जैसे अभयदान

देता हुआ

कह रहा हो पीपल,

में हूँ ना संरक्षक

तुम्हारा !

 

नवल -परंपराओं का

आगाज़ करनेवाला,

हमें दुलराने वाला 

सांस्कृतिक वृक्ष है

पीपल !

 

सचमुच बहुत प्यारा

लगता है मुझे बहुत प्यारा

दादा जी जैसा

वह बूढ़ा पीपल !

 

आओ, हम अंधविश्वास

और भ्रांतियों को तिलांजलि दें

हाथ में ले , छोड़कर जल !!