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गज़ल: शाम ढ़ल रही है कभी कबार मिलने आ जाया कीजिए (लाल चन्द जैदिया "जैदि", बीकानेर, राजस्थान)


पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार लाल चन्द जैदिया "जैदि"  की एक गज़ल जिसका शीर्षक है “शाम ढ़ल रही है कभी कबार मिलने आ जाया कीजिए”:

शाम ढ़ल रही है कभी कबार मिलने आ जाया कीजिए
ढ़ल जाऐ शाम तो फिर खांमखा वक्त ना जाया कीजिए।
 
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कुछ है खता हम से हजूर बताने मे क्या हर्ज बता दीजिए
यूं छिपा के दिल के छाले तुम खुद को ना हंसाया कीजिए।
 
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कमजोरी जान के खंजर चलाने की आदत सी है जहां को
कितना भी है खाश कोई, राज दिल के ना बताया कीजिए।
 
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लगा देता आग पानी मे, सितमगर जब ठान लेता है कोई
कितनी है गहरी दरार दिलो मे, कभी ना दिखाया कीजिए।
 
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दुनिया मे है छिपे कई राज, कोई बताता है कोई छिपाता है
है राज अगर किसी का,जब तक हो उसको दबाया कीजिए।
 
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तन्हाइयों मे कटती है हर शाम 'जैदि' की दिवानो की तरहा
छोड़ दो उसको उसके हाल पर बेवजह ना सताया कीजिए।
 
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