पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार लाल चन्द जैदिया "जैदि" की एक गज़ल जिसका
शीर्षक है “शाम ढ़ल रही है कभी कबार मिलने आ जाया
कीजिए”:
शाम ढ़ल रही है कभी कबार मिलने आ जाया कीजिए
ढ़ल जाऐ शाम तो फिर खांमखा वक्त ना जाया कीजिए।
**************
कुछ है खता हम से हजूर बताने मे क्या हर्ज बता दीजिए
यूं छिपा के दिल के छाले तुम खुद को ना हंसाया कीजिए।
***************
कमजोरी जान के खंजर चलाने की आदत सी है जहां को
कितना भी है खाश कोई, राज दिल के ना बताया कीजिए।
***************
लगा देता आग पानी मे, सितमगर जब ठान लेता है कोई
कितनी है गहरी दरार दिलो मे, कभी ना दिखाया कीजिए।
****************
दुनिया मे है छिपे कई राज, कोई बताता है कोई छिपाता है
है राज अगर किसी का,जब तक हो उसको दबाया कीजिए।
****************
तन्हाइयों मे कटती है हर शाम 'जैदि' की दिवानो की तरहा
छोड़ दो उसको उसके हाल पर बेवजह ना सताया कीजिए।
****************