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कहानी: वो निरीह सी आँखे (मंगला श्रीवास्तव, इंदौर, मध्यप्रदेश)

 

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार मंगला श्रीवास्तव की एक कहानी  जिसका शीर्षक है “वो निरीह सी आँखे":    

 दीनानाथ जी अभी अपने ऑफिस पहुँचे ही थे ,कि घर से उनकी पत्नी का फोन आ गया।। वो घबराई हुई आवाज में बोली सुनो जल्दी घर आओ वो  झुमकी को कुछ हो गया है। वो कुछ पूछ पाते इसके पहले ही फोन कट गया ।शायद उनकी पत्नी ने काट दिया था घबरा कर।वो जल्दी से अपना बैग उठा कर बाहर निकले और ड्राइवर को कार निकालने को कहा। जैसे ही  ड्रायवर कार लाया वो जल्दी से उसमे बैठे और उसको घर चलने का बोला।

    आँखे  मूंद कर वो झुमकी के बारे में सोचने लगे।झुमकी को वो ही लेकर आये थे। वो अतीत में जा चुके थे। दीनानाथ जी दिल्ली के जाने माने  ठेकेदार थे।और  बड़े बड़े कॉन्टेक्ट  को ही हाथों में लेते थे। घर मे धन दौलत की कोई कमी नही।दिल्ली में आलीशान घर था।तीन बच्चें दो

बेटें व एक बेटी थी। सुंदर  छोटा सा परिवार पत्नी वो भी अच्छी समाज से जुड़ी हुई महिला थी ।तीनो बच्चे बहार ही पढ़ाई कर रहे थे।

   एक बार जब उनको पटना के एक गाँव मे सड़क बनाने का बहुत बड़ा कॉन्टेक्ट मिला।बड़ा प्रोजेक्ट था चार पांच महीने तक उनको पटना के रायगढ़ गांव में ही गेस्ट हाऊस में रुकना पड़ा।एक दिन उनको गेस्ट हाउस में काम करने वाला एक नोकर सोहन जो उनका पूरा काम करता था , बोला साब आज आपको एक जगह ले चलता हूँ ।आपका दिल खुश हो जाएगां।पहले तो वो मना करने वाले थे पर फिर उनका आदमी मन बहक गया। और वो उसके साथ हो लिए। हालांकि वो मन ही मन  मे डर भी रहे थे आज तक उनने ऐसा कोई काम नही किया था।उनकी गाड़ी गांव की गलियों से गुजरते हुए आखिर गाँव के बिल्कुल  बहारी छोर पर जाकर रुकी।

  चलिए साहब वो थोड़ झिझकते हुए उतरे ,व देखने लगे वो एक दो मंजिला बडा मकान था कुछ पुराना सा। बहार एक आदमी जो थोड़ गुंडे टाइप का था खड़ा था।

 अरे सोहन तुम आज इतने दिनों बाद इधर कैसें।  अरे आज अपने बड़े साब को लाया हूँ। अच्छा कौन है ये ?

अरे अपने गांव के बहार जो सड़क बन रही है ना हाइवे की ,वो काम इनके हाथों में ही है । अच्छा ठीक है ले जा अंदर।

चलो साब , एक पल उनका मन वापस लौटने का भी हुआ।पर मन नही माना वो खीचें से अंदर चले गए। शायद उस जगह का प्रभाव या माहौल उनको अंदर ले ही गया।अंदर एक बड़े से  कमरे में एक भारी भरकम मेकअप से लिपी पुती पान चबाती हुई एक महिला जो बड़ी ही रुआबदार लग रही थी बैठी थी। वो उन सभकी मालकिन लग रही थी।

उसके आसपास भी एक दो गुंडे टाइप आदमी खड़े थे।और कई लड़कियाँ वहाँ  घूम रही थी। जिनकी उम्र कोई ज्याद नही होगी। अरे सोहन किसको लाये हो इस बार तो बड़े दिनों बाद आये हो। वो इस तरह बोली शायद उसको  वो अच्छी तरह पहचानती थी । सोहन खीसें निपोरता चापलूसी के अंदाज में बोला अरे शबनम बाई बस ऐसे ही काम ज्यादा था।

वो शायद अक्सर वहाँ आता जाता रहता होगा। ये हमारे बड़े साब है ।जो नई सड़क का काम चल रहा है  वो ये ही करवा रहे है।शबनम बाई आज इनको खुश कर दो । ठीक है तुम जाओ अच्छा साब में आता हूं थोड़ी देर में।

 वो चला गया। अरे छोटे साब को चार नम्बर के कमरे में छोड़ कर आ।

    वो लड़का उनको एक कमरे में छोड़ कर चला गया। वो कमरे में नजर घुमा कर देखने लगे । उनको कोने में एक लड़की डरी सहमी सी खड़ी नजर आयी।बमुश्किल वो पन्द्रह साल  या सोलह साल  की होगी।उनका मन उसको देख एक बार अंदर से कांप सा गया ।अरे ये तो मेरी बेटी की उम्र की है।उनकी आँखों के आगे उनकी बेटी का चेहरा घूम गया।वो अपने आप से लज्जित हो गयें ।में ये क्या पाप करने जा रहा हूँ। वो जैसे ही आगे बढ़ें वो लड़की और पीछे दुबक गयी । वो मानों अपने आप को बचाने की कोशिश कर रही हो।

डरो मत में कुछ नही करूंगा। ये कह कर वो वही रुक गए ।शायद  उसको  भी थोड़ा भरोसा हुआ तो वो आगे आयी।उसको देख वो दया से भर गए थे।उसके चेहरे व हाथ पर ख़रोंच व पिटाई  के निशान थे। शायद किसी की वहशीपन का शिकार हो चुकी थी वो मासूम। उसकी मासूम निरीह सी आँखों मे एक अजीब सी कशिश थी ।तीखे  नैन नक्श और सांवली पर सुंदर। वो बहुत ही मासूम सी लग रही थी।

 क्या नाम है तुम्हारां ?

     जी झुमकी वो धीरे से बोली।

कहाँ रहती हो? तुम्हारे माता पिता कहाँ है ?

  पास के गाँव मे चाचा के यहाँ रहती थी। पिता नही है मर गए। मां वो छोड़ कर कहि चली गयी, किसी के साथ पता नही।चाचा ने थोड़े दिन रखा चाची बहुत

 मारती थी काम करवाती थी।और अब एक दिन चाचा यहाँ छोड़ गए।ये लोग भी बहुत मारते है, साब गन्दा काम करवाते है। बोलते है तुम्हारे चाचा को बहुत सारे रुपये दिए है। हम जो बोलेंगे वो करना होगा।वो रो रही थी।उनका मन द्रवित हो गया था।

मैंरें साथ चलोगी मैंरें घर। वो अविश्वास से उनको देखने लगी थी। उसका शायद विश्वास नहीं हो रहा था। या सभी से उसका विश्वास अब उठ चुका था।पर उनको देख  अब उसको थोड़ा भरोसा  लगा ।वो बोली सच साब आप ले चलोगें मैं आपके घर का सारा काम कर दूँगी।खाना भी बना दूँगी मुझको सब आता है।अब उनने एक निर्णय ले लिया था।

   की कुछ भी हो जाये वो झुमकी को इस दलदल से निकालेगें। उन्होंने बाहर आकर सोहन से बात की ,और शबनम बाई को दो लाख रुपये देकर झुमकी को अपने साथ दिल्ली ले कर आ गए।  झुमकी उनके घर मे सभी को अच्छी लगी ।उनकी पत्नी का तो मानो वो एक सहारा हो गयी थी।वो हर काम इतनी अच्छी सीख गई थी व  करने लगी थी मानों वो बरसों से यहीं रह रही हों।

वो अब घर की बेटी की तरह हो गयी थी।हर जिम्मेदारी को वो बहुत अच्छी तरह समझती थी।अब दीनानाथ जी उसका एडमिशन भी करवाने वाले थें ।वो चाहते थें की वो भी पड़ लिख कर अपने पैरों पर खड़ी हो जाये। अबकी बार छुट्टियों में उनके बच्चें भी आये हुए थे। वो भी झुमकी से मिल कर बहुत खुश थें।

  उनकी तन्द्रा टूटी जब ड्राइवर बोला साब घर आ गया। घर के आगे बहुत भीड़ लगी थी पुलिस की गाड़ी भी खड़ी थी।वो घबरा कर जल्दी से उतरें और जल्दी से घर में चले गए ।हॉल में झुमकी का शव रखा हुआ था।पुलिस उनकी पत्नी और बच्चों से  पूछ ताछ कर रही थी ।उनकी पत्नी रो रही थी। उनकों देख कर वो बदहवास सी उनके पास आ गई। पुलिस उनके पास आकर उनसें भी पूछताछ करने लगी।थोड़ी देर बाद शव वाहन भी आ गया था।झुमकी के शव को पोस्टमार्टम के लिए ले जाया गया। दीनानाथ जी वो तो मानों सदमें में ही आ गए थे।वो कुछ समझ नही पा रहे थे ।पुलिस अनुसार ये आत्महत्या का केस था। वो कुछ समझ नहीं पा रहें थे।आखिर झुमकी ने ऐसा क्यों किया ।अगर उसको कुछ समस्या थी तो वो उनकों या शोभाजी उनकी पत्नी को बताती तो सही।

  झुमकी की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गयी थी।  पुलिस ने उनकों थानें में बुलाया तो वो और उनकी पत्नी थाने गए । इंस्पेक्टर ने उनकों वो रिपोर्ट पढ़नें को दी ।

   जैसे ही उन्होंने वो रिपोर्ट पड़ी उनके पैरों तले जमीन मानों खिसक गई। उस रिपोर्ट के अनुसार झुमकी के साथ रेप हुआ था कई लोगें के द्वारा। अब फिर से जाँच शुरू हुई ।तो पता चला ये घिनोनी करतूत उनके छोटें बेटें रमन और उसके दोस्तों ने मिलकर की थी। जो सभी बहुत बड़े घराने के लड़के थें ।उनका गुस्से से बुरा हाल था।पर उनकी पत्नी ने अपने घर की इज्ज़त व मान मर्यादा की दुहाई देकर उनको चुप करवा दिया था। रमन के सारें दोस्तों के माता पिता व उनकी पत्नी नें बहुत से रुपये ले देकर केस वही बन्द करवा दिया था । वो कुछ भी नही बोल पाएं ।और उनकी पत्नी ने अपने घर की इज्जत का हवाला और बदनामी का डर दिखा कर उनका भी मुँह बन्द कर दिया था।

  आज झुमकी की मौत को हुए एक महीना हो चुका था।घर मे सभी उस घटना को भूल भी चुके थे ।बस दीनानाथ जी को छोड़ कर। उनकी आँखों से मानो नींद ही उड़ चुकी थी।

 अब उनको हर वक्त बस झुमकी की वो मासूम निरीह सी आँखे ही दिखाई देती थी ।वो जो मानों उनको देख रही हो औऱ पुकार रही हो। देखो साब आपने उस दलदल से मुझको निकाल लिया था। वहाँ के हैवानों से तो मुझकों बचा लिया।

 पर आपके घर मे बसे हुए हैवानों से मुझकों नही बचा पाए। ना ही इंसाफ दिला पाए। वो अक्सर चौक कर उठ  जाते । पर आज उन्होंने एक कड़ा निर्णय ले ही लिया,  कि अब  चाहे कुछ भी हो जाएं वो ना, अपने घर की बदनामी से  डरेंगे ,और ना ही अपने बेटें के जेल जाने से।कल ही थाने पर जाकर झुमकी के केस को रीओपन करवाएगें। व उसके सारें दोषियों को सजा दिलवाकर ही चेन की सांस लेंगे। वो मासूम झुमकी को न्याय दिलवाएंगे ।आज ये सोच कर उनका मन जैसे हल्का हो गया था। आज उनको इतने दिनों बाद नींद आ रही थी। सकुन भरी नीद।