केसर- बरन वेस धरे हैं श्रीनाथ प्रभु ,
आपकी लुनाई का न आदि है न अंत है ।
चाहते हैं आपको अबाल-वृद्ध, नर -नारी,
दरस ते पुलकित संत औ महंत हैं।
आपके अधर हैं अनारकली आरकत,
कुंदकली जैसे शुभ्र मोती जैसे दंत हैं ।
आपको प्रताप दीप्त होय रह्यो भानु सम ,
कीरति से गूँज रहै, दिग् औ दिगन्त हैं ।।
नूतन है परिधान आपके सु तन आज ,
नये अलबेले इस रूप की बधाई है।
रंग हैं विविध, कला - संगम रुचिर बन्यो,
तड़क-भड़कयुत बान कीदुहाईहै।
आपको विलास लीलामय औ रहस्यपूर्ण,
दुनिया अवाक् कछु समुझि न पाई है ।
दरसन करें अरु मुग्ध होय रही बस,
रस की अलीक लीक आपने चलाई है ।।
नभ के सितारों मध्य चाँद भी अनूठा उगा,
जग है कृतार्थ हुआ, कृष्णचन्द्र बाजै है ।
सर्वगुण युत है औ नीति में धुरंधर जो,
राजराज योगेश्वर द्वारिका के राजै हैं ।
इनके तो ठाठबाट कहा मैं बयान करूँ,
सब सुख- साज याके चरणों में साजै हैं ।
इनको समरपित होइ जावै कोई यदि ,
बीसबिसै कहूँ, प्रभु रीझते अकाजै हैं ।।