स्याम तेरो रूप है अगाध चारुता को लिये,
खूबसूरती की लला तेरी तो बलाई है ।
मणियों के हार औ केयूर बहुमूल्य राजै,
केसरी है बेस, नीली- नीली पिछवाई है ।
कानन में कुंडल हैं, हीरो भी हसीन लागै,
नलिन-से नैन तेरे बड़े सुरमाई हैं ।
नित प्रति तेरी ये मधुर छवि पान करैं,
बड़भागी हुए, यही अति सुलभाई है ।।
अपलक निहारतो मैं रह्यो प्रभु रूपतेरो,
नीलमणि घनश्याम तेरी बड़ी शान है ।
अपरूप छवि तेरी सेवनीय है परम,
पड़ी मेरे नैनन को तेरी बड़ी बान है ।
सुंदर- बिसाल पुष्पमाल रंगरंगीली है,
नई शैली पगड़ी की मुझे अभिमान है ।
सज्यो- धज्यो ब्रजराज आज ऐसो ओप रह्यो,
ऐसो लगै कान्ह बरसानै मेहमान है।।
नवलकिसोर जू को आज को सिंगार देख,
मन को मयूर मेरो नाच - नाच जावै है ।
प्रीत को है रंग ये बिसेस लला पीरो - पीरो,
आपको तो मेरे नाथ यहै बड़ो भावै है ।
नित रहो बने- ठने , नये-नये प्रति छने,
आपकी है निसरा तो कहाँ को अभावै है ?
पाग, आमली औ चंद्र आपके सुशोभन हैं ,
मेवाड़ी परंपरा को नाथ तू निभावै है ।।