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कविता: हिन्दी राष्ट्र धरोहर है (राघवेंद्र सिंह, चिनहट, लखनऊ, उत्तर प्रदेश)

 

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार राघवेंद्र सिंह  की एक कविता  जिसका शीर्षक है “हिन्दी राष्ट्र धरोहर है”:

जननी संस्कृत से उद्गम हिन्दी तो एक सरोवर है।
प्रबुद्धजनों की बनी कल्पना हिन्दी राष्ट्र धरोहर है।
हिन्दी भारत की चिर आयु हिन्दी भारत की है आशा।
हिन्दी भारत गौरव गाथा हिन्दी जन जन की है भाषा।
 
हिन्दी दोहों का है प्रकाश हिन्दी मानस चौपाई है।
हिन्दी कबीर की है वाणी हिन्दी तुलसी को भायी है।
हिन्दी मीरा का कृष्ण प्रेम हिन्दी सूर की ज्योतिपुंज।
हिन्दी अगणित शब्दों की बनी एक है दिव्य कुंज।
 
हिन्दी पंत का प्रकृति प्रेम हिन्दी दिनकर की राष्ट्रभक्ति।
भारतेन्दु की नाटक हिन्दी है जयशंकर की अभिव्यक्ति।
महादेवी की दीपशिखा है बच्चन की मधुशाला हिन्दी।
मां वीणापाणि की अमर वंदना और निराला है हिन्दी।
 
है शब्दों का स्वछंद भाव हिन्दी रस है और अलंकार।
हिन्दी ओजता का पर्वत हिन्दी कविता का है श्रृंगार।
हिन्दी है नदियों का कल कल हिन्दी हृदय सौंदर्य है।
अधरों की मुस्कान है हिन्दी हिन्दी प्रेम माधुर्य है।
 
हिन्दी है जीवन का प्रभात हिन्दी ही धरा का है गहना।
हिन्दी के पुष्प रजित चरणों में हम सबको ही है रहना।
हिन्दी स्वयं व्याकरण है हिन्दी तो ज्ञान का है एक रथ।
हिन्दी राष्ट्र की है भाषा हिन्दी तो स्वयं ही है भारत।