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कविता: मेरा अरमान (राधा गोयल,विकासपुरी, दिल्ली)

 

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार राधा गोयल की एक कविता  जिसका शीर्षक है “मेरा अरमान":

मेरा ये अरमान, विश्व में हिन्दी का परचम फहराये।

अन्तर्राष्ट्रीय भाषा बनकर, ये भारत का मान बढ़ाये।

सब भाषाएँ सम्मानित हैं, लेकिन इतना ध्यान रहे।

अपनी राष्ट्रभाषा के प्रति, इक गर्व भरा अभिमान रहे।

 

अंग्रेजों ने संस्कृत सीखी, वेद ग्रन्थ पढ़ लिये हमारे।

आविष्कार हमारे थे जो, अपने नाम किये वो सारे।

हिन्दी सीखी संस्कृत सीखी, और वेदों का ज्ञान लिया।

आविष्कार हमारे थे जो, सबको अपना नाम दिया।

 

कोई मुगालता है तो जाओ, मसूरी के लण्डौर में तुम।

जिसका हमने किया है वर्णन,उसका सच जानोगे तुम।

अब भी उस विद्यालय में अनिवार्य विषय संस्कृत हिन्दी।

अनुप्रास और अलंकार के गहनों से शोभित हिन्दी।

 

हिन्दी विश्व पटल पर चमके,तो निश्चय करना होगा।

लोगों को जागृत करने को, साहित्य सृजन करना होगा।

साहित्य सृजन ऐसा हो, जिससे मोह विदेशी छूट सके।

आँखों पर जो भ्रम का पर्दा पड़ा हुआ, वह टूट सके।

 

एक शब्द के कितने पर्यायवाची इस भाषा में।

नहीं मिलेंगे पूर्ण विश्व में, किसी देश की भाषा में।

वसुधा,वसुन्धरा, धरा,धरित्री,पृथ्वी और धरतीमाता। 

नभ आकाश गगन लगते हैं नाम अलग, पर इक नाता।

 

जब तक तन में जान, प्राण-प्रण से यह फर्ज़ निभाना है।

कवियों उठो! हमें मिलकर  हिन्दी को हक दिलवाना है।

अन्तर्राष्ट्रीय भाषा, बन जाएगी हिन्दी भाषा।

चलो लिखें हम विश्व पटल पर, अपनी गरिमामयी भाषा। 

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