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ग़ज़ल: चाहत (रंजना बरियार, श्रृंखला, न्यू एरिया मोराबादी, राँची, झारखंड)

 

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार रंजना बरियार की एक ग़ज़ल  जिसका शीर्षक है “चाहत:
 
खुश रहना मेरी चाहत है,
होकर प्रेमपाश आहें भरने की हसरत है!
 
जीवन जीना मेरी चाहत है,
खुश रहकर अश्क  बहाने की हसरत है!
 
खिली मुस्कान मेरी चाहत है,
फरेबी  मुस्कान के  बहाने से  नफ़रत है!
 
हँसकर ख़ुशी जताने की चाहत है ,
ख़ुशी  जताने  के  दिखावे  से  नफ़रत है!
 
प्रेम  में  रहना  मेरी   जन्नत   है ,
प्रेम  के   बहाने  शोषण   से   नफ़रत  है!
 
खामोशियाँ   मेरी    चाहत    है,
ख़ामोश  ख़ंजरों   के  वार  से  नफ़रत है!
 
आपकी मुस्कान  मेरी  चाहत है,
मगर क़ुर्बानियों के दिखावे से नफ़रत है!
 
सुन्दर  पोशाक  मेरी   चाहत  है,
मगर  प्रभावहीन  पोशाकों से नफ़रत है!