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कविता: राष्ट्र भाषा की व्यथा (निशा ठाकुर, लूकशान, नगराकाटा, जलपाईगुड़ी, पश्चिम बंगाल)

 

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार निशा ठाकुर  की एक कविता  जिसका शीर्षक है “राष्ट्र भाषा की व्यथा”:

सुनाऊं पीर हृदय की
कैसी मेरी व्यथा है
पतन होरहा पहचान की मेरी
ऐसी दुखभरी मेरी कथा है
 
नाम तो मिला राष्ट्र भाषा
पर सम्मान ना दिया कोई
बेटी जैसा भारत ने माना।
पर वो पहचान ना दिया कोई
 
नमस्ते का तुम्हारा संस्कार
Hi hello में लीन हुआ
बड़ो का आदर और सत्कार
फैशन की दुनिया ने छीन लिया
 
अंग्रेजी मीडियम में  पढ़ाना
इसी में तुम्हारी  शान है
कैसे  करेगी तुम्हारी पीढ़ी
राष्ट्रीयता का गुणगान है
 
भारत मा की अंस हूं मै
कवियों की रचनाओं की शान
इतिहासों में भी है मेरा बसेरा
मान्यता दिया मुझे खुद संविधान
 
नागरिक ही तुम देश के
मा भारती का कर्ज  चुकाओ
झुक ना जाए देश का गौरव
भाषा के प्रति फर्ज निभाओ
 
सुनाऊं पिर हृदय की
ऐसी मेरी कहानी है
लुप्त होती मेरी पहचान
बचाने कि किसने ठानी है
?