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कविता: हमारी राजभाषा हिंदी (रंजना मिश्रा, कानपुर, उत्तर प्रदेश)

 

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार रंजना मिश्रा  की एक कविता  जिसका शीर्षक है “हमारी राजभाषा हिंदी”:

हमारी मातृभाषा पर हमें तो नाज है इतना
मृदुल शब्दों की ये माला मधुर अंदाज है कितना
सभी भाषाएं हैं बहनें मगर सबसे बड़ी है ये
मिटा सकता नहीं कोई सदा अविचल खड़ी है ये
किसी भाषा का हो भाषी मगर इतना जरूरी है
नहीं आती अगर हिंदी तो सब गरिमा अधूरी है
इसी हिंदी में तुलसी, सूर और मीरा ने पद गाये
कहानी, नाटकों में और उपन्यासों में ये भाये
बड़ा प्राचीन है इतिहास इसका भारती है ये
पकड़ उंगली चले जो भी उसे संवारती है ये
हमें फिर से इसे भारत के माथे पर बिठाना है
मिटा गौरव जो है इसका इसे वापस दिलाना है
हमारी राजभाषा है हमारे देश की बिंदी
है ये पहचान भारत की बड़ी सम्माननीय हिंदी