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कहानी: ऐसा ही होता है (आदित्य अभिनव उर्फ डॉ. चुम्मन प्रसाद, कौशाम्बी, उत्तर प्रदेश)

 

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार आदित्य अभिनव उर्फ डॉ. चुम्मन प्रसाद की एक कहानी  जिसका शीर्षक है “ऐसा ही होता है":

 [1]

अमित ने पानी का ग्लास रखा ही था कि मोबाईल बज उठा "हेलो! मिसेज कनुप्रिया हैं? मैं मिसेज शर्मा बोल रही हूँ।

"नमस्ते मैडम! वो मार्केट गई हैं।"

"कब तक आयेंगी?"

"दो घण्टे में आ जायेंगी।"

"ठीक है, मैं फिर फोन करूंगी।"

"ठीक है, मैडम! नमस्ते।"

इसके साथ ही अमित श्रीवास्तव ने मोबाइल रख दिया। अमित श्रीवास्तव भारतीय वायु सेना में सार्जेंट हैं। अवस्था चालीस वर्ष, लेकिन इसी उम्र में दोनों ही आँखें मोतियाबिंद से ग्रसित। डॉक्टर ने पहले दाहिनी आँख का ऑपरेशन किया था। डॉक्टर के सलाह पर उन्होंने एक महीने की छुट्टी ली है। उनकी धर्मपत्नी कनुप्रिया मनोविज्ञान विषय से परास्नातक हैं और भारतीय वायु सेना संगिनी कल्याण संस्था (अफवा) के सभी कार्यक्रमों में वह सक्रिय रूप से भाग लेती हैं। कार्यक्रमों में उनकी प्रस्तुतियों की हमेशा प्रशंसा होती है। अफवा द्वारा अनेक बार पुरस्कृत भी हो चुकी हैं। अमित की यूनिट के कमांडिंग ऑफिसर की पत्नी मिसेज अंजना शर्मा इन्हें अफवा के हर प्रोग्राम के बारे में इन्हें अवश्य सूचित करती हैं क्योंकि यह यूनिट की तरफ से एक सशक्त प्रतिभागी हैं। अमित ने तो अंदाजा लगा ही लिया था कि शायद कोई प्रोग्राम स्टेशन लेवल पर होनेवाला है; क्योंकि मिसेज शर्मा बेमतलब तो फोन नहीं करतीं।

 

लगभग डेढ़ घण्टे बाद कनुप्रिया ने एक हाथ में पाँच किलो आटे का पैकेट तथा दूसरे हाथ में सब्जियों का झोला लटकाये थके कदमों से घर में प्रवेश किया तो अमित ने झोला थामते हुए कहा "सी. ओ. सर के मिसेज ने फोन किया था। तुमसे बात करना चाहती थी। लगता है कोई प्रतियोगिता या कार्यक्रम का आयोजन स्थानीय अफवा द्वारा होने वाला है।"

"कब आया था फोन?" कनु ने पूछा।

"लगभग डेढ़ घण्टे पहले।"

"कुछ बताया उन्होंने कि किसलिए फोन किया था।"

"नहीं और मैंने पूछा भी नहीं।"

"चलो ठीक है। फिर फोन करेंगी।"

 [2]


अगले दिन सुबह नौ बजे मिसेज शर्मा का फोन आया।

बाद में अमित ने कनुप्रिया से पूछा "क्या बात हुई, मिसेज शर्मा से?"

"वही अफवा द्वारा सत्ताईस फरवरी को भाषण प्रतियोगिता का आयोजन हो रहा है। प्रतिभागी के रूप में मेरा नाम यूनिट की तरफ से दिया है।"

"और भी कोई है अपनी यूनिट से।"

"हाँ, मिसेज नंदनन एवं मिसेज सीमा अफज़ल भी भाग ले रही हैं।"

"टॉपिक क्या है?"

"नारी का महत्त्व: घर और समाज में।"

"टॉपिक तो बहुत बढ़िया और आसान है, तैयारी कर लेना।"

"तैयारी और मैं? मैं तो हमेशा आपके बल पर भाग लेती हूँ। पता है आपने जो कविता लिखी थी मेरे लिए जो वायु सेना संगिनी पत्रिका में छपी थी, उसकी बड़ी प्रशंसा कर रही थी सी. ओ. मैम।"

चलो अच्छा है, नाम तो तुम्हारा ही होता है।" अमित ने मुस्कुराते हुए कहा।

"पत्नी भी तो तुम्हारी ही हूँ।" कहते हुए कनु ने अमित के गले में अपनी बाँहें डाल दी।

 

 [3]


अमित और कनुप्रिया दूरदर्शन पर चल रहा धारावाहिक हरी मिर्ची लाल मिर्चीदेख रहे थे कि दरवाजे पर दस्तक हुई। दरवाजा खुलते ही सार्जेंट अफज़ल ने कहा, "नमस्ते सर।"

"नमस्ते अफज़ल!"

"नमस्ते भाई साहेब!" मिसेज सीमा अफज़ल का स्वर था।

"नमस्ते भाभीजी।"

आइए, आइए। कैसे आना हुआ।" दरवाजे से एक तरफ हटते हुए अमित ने कहा।

"हम लोग आपके पास बड़ी आशा से आए हैं भाई साहेब!" मिसेज अफज़ल ने कुर्सी पर बैठते हुए कहा।

"क्या बात है?"

"अफवा द्वारा आयोजित भाषण प्रतियोगिता में मैं भी भाग ले रही हूँ। सी. ओ. मैडम ने आपसे मदद लेने को कहा है। आपके भरोसे मैंने प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए हाँ कहा है।"

"लेकिन प्रतियोगिता में तो मैं भी भाग ले रही हूँ।" पानी का ग्लास टेबल पर रखते हुए कनुप्रिया ने कहा।

"तो क्या हुआ दोनों के लिए लिख देंगे सर।" अफज़ल ने अमित की ओर देखते हुए कहा।

"लेकिन इनका तो ऑपरेशन हुआ है मोतियाबिंद का। पढ़नालिखना एक माह के लिए डॉक्टर ने मना किया है।" कनुप्रिया ने खुलासा किया।

"कोई बात नहीं भाई साहेब! अभी तो समय है बीस दिन का। तीन मिनट की ही तो स्पीच है। आप बोल दीजिएगा, भाभीजी लिख देंगी।"

"चलिए, कोई बात नहीं। जब आप लोग मुझ पर भरोसा कर आए हैं तो मैं आपका भरोसा नहीं तोड़ूंगा। लिख दूँगा और आपको प्राइज भी मिलेगा।" अमित ने मिसेज अफज़ल को सांत्वना दी और फिर अफज़ल की ओर मुखातिब हुए, "चलो ये तो हो जाएगा। अब सुनाओ सेक्शन में क्या चल रहा है। मैं तो छब्बीस फरवरी तक छुट्टी पर हूँ।"

"सब ठीक है सर। तीन वॉच ही चल रहा है, पहले जैसा।"

बातों का सिलसिला चल ही रहा था कि कनुप्रिया नमकीन एवं चाय लेकर आ गई। चाय पीने के बाद अफज़ल ने कहा "सर! चलते हैं घर पर बच्चे शरारत कर रहे होंगे।"


 [4]


ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़ी हो कनुप्रिया अफवा मीटिंग में जाने के लिए तैयार हो रही थी। साड़ी का पल्लू ठीक कर रही थी, तभी अमित ने कनु का कंधा थपथपाते हुए कहा "बेस्ट ऑफ लक, आराम से बोलना, घबराना नहीं।"

पौने तीन बजे अमित जब घर पहुँचे तो दरवाजा खुला था। रास्ते भर वे सोच रहे थे कि जाते ही कनु मुस्कुरातेइठलाते हुए अपना प्राइज दिखलायेगी; लेकिन यहाँ तो वह बेडरूम में चादर ओढ़े पलंग पर पड़ी थी।

अमित ने जूता खोलते हुए पूछा "क्या हुआ, कौन-सा प्राइज मिला?"

"कुछ नहीं, कंसोलेशन प्राइज।" कनु ने दु:ख और कड़वाहट भरे स्वर में कहा।

"क्यों, तुम्हारा भाषण तो बहुत ही अच्छा था और प्रस्तुतिकरण तो अच्छी ही रही होगी।" अमित ने आश्चर्यमिश्रित स्वर में कहा।

"गलती मेरी ही थी कि मैंने निर्धारित तीन मिनट के समय-सीमा का अनुपालन किया तथा शुद्ध-प्रांजल भाषा का प्रयोग किया।" कनु के स्वर में कटाक्ष था।

"चलो कोई बात नहीं। ऐसा होता है।"

"मिसेज अफज़ल का क्या हुआ?" अमित ने फिर पूछा।"

"उसे तो फर्स्ट प्राइज मिला।"

"लगता है मैंने जितना लिखा था उसने पूरा-पूरा बोला है, तुम्हारी तरह समय-सीमा के पीछे नहीं पड़ी होगी। चलो अपनी यूनिट से ही कोई प्रथम आया। तुम्हें तो उन्होंने धन्यवाद दिया होगा और मेरे प्रति कृतज्ञता जताते हुए कहा होगा यह सब भाई साहेब के वजह से हुआ है’, है ना?" अमित के स्वर में संतोष की झलक थी।

"हाँहाँ! इतना धन्यवाद दिया कि मैं उसे सम्भाल नहीं सकी। अब आप जाकर समेट लाइए। लिखते वक्त तो खूब सुंदर-सुंदर कथन और शब्द जोड़ रहे थे। डूबकर लिख रहे थे। कहते थे मुझ पर विश्वास है तभी तो आई है।" कनु के आहत हृदय का व्यंग्य फूट पड़ा।

"आखिर, कहोगी भी कि क्या बात हुई।" अमित ने उत्सुकता प्रकट की।

"हुआ क्या, जब प्रतियोगिता आरम्भ होने वाली थी तब मैंने उससे कहा, "चलिए भाभीजी! हम दोनों में से कोई भी जीते; लिखा तो एक ही ने है।"

तो पता है उसने क्या कहा "मैंने तो भाई साहेब की केवल तीन लाइनें ली हैं, कविता वाली, बाकी सब अपने मन से लिखा है। उनका लिखा मैं थोड़े बोल रही हूँ।"

"अच्छा फिर।"

"फिर क्या, जब बोलने लगी तो सारा का सारा आपका ही लिखा हुआ था। सम्बोधन में थोड़ा-सा बदलाव कर दिया था बस।"

"छोड़ो, अंत में क्या कहा उसने।" अमित ने जिज्ञासा भरे स्वर में कहा।

"कहती तब न, जब मिलती। मैं जब मिलने गई तो दूसरी तरफ हट गई।"

"कोई बात नहीं। ऐसा ही होता है। ठोकर खाकर ही अक्ल आती है।" अमित ने हृदय की टीस को दबाते हुए हौले से कहा।