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कविता: रोना-धोना बंद करो (राधा गोयल, विकासपुरी, दिल्ली)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार राधा गोयल  की एक कविता  जिसका शीर्षक है “रोना-धोना बंद करो”:


बेमतलब में एक दूजे की टाँग खींचना बंद करो,
मिल जुलकर के सभी पार्टियाँ देश का नव निर्माण करो।
एक दूसरे पर नाहक आरोप लगाना बंद करो।
देश तरक्की करे किस तरह, इस पर सोच विचार करो।
 
बंद करो ये झूठ- मूठ का रोना- धोना,
रोना- धोना छोड़ के सार्थक काम करो ना।
कितनी समस्याएँ हैं, जो मुँह बाए खड़ी हैं,
कैसे समाधान हो,कोई उपाय करो ना।
 
कोरी बातें करने से हल होगी नहीं समस्या,
केवल रोने- धोने से हल होगी नहीं समस्या।
सबको मिलकर ठोस उपाय ढूँढना होगा
उचित उपायों को फिर अमल में लाना होगा।
 
केवल रोने- धोने से हल होती नहीं समस्या,
रोने- धोने के कारण होती है बड़ी समस्या।
कोरे वादे करके लोगों को फुसलाना बंद करो।
वोट की खातिर नोट बाँटकर, यूँ बहलाना बंद करो।
 
आगजनी और आन्दोलन का खेल घिनौना बंद करो।
वोट के लालच में लोगों में घृणा फैलाना बंद करो।
यदि वास्तव में देश प्रेम है,देश का नव निर्माण करो।
देश बचाना चाहते हो तो देश का कुछ कल्याण करो।