पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार राजीव भारती की एक कविता जिसका
शीर्षक है “बेटियां”:
बेटियां घर को चलातीं
बेटियां घर को बसातीं
बेटियों से बनता परिवार है
और बेटियों से ही रचता नया संसार है
आज की बेटी--
न जाने कितने नये रिश्तों की जननी है
बेटी ही तो कल की भाभी,नन्द या पत्नी है
उसने ही जन्म दिया है
राम,रहीम, गांधी को
ईसा, कृष्ण, गौतम को
उसी ने जने,
न जाने कितने साधू, महात्मा या कलाकार
या फिर
प्रशासक, अभियंता या पत्रकार ।
वही तो जननी है
राधा, सीता, रुक्मिणी की
या फिर
द्रौपदी,इन्दिरा,कुन्ती की ।
फिर उनपर आज इतना जुल्म क्यों है?
क्यों अपमानित हो रही वह सरेआम?
और आत्महत्या करने को विवश हैं?
वक्त अब भी है संभल जाओ !
क्यूंकि यदि घटती रही यूं ही बेटियां
तो, बिगड़ जायेगा स्त्री-पुरुष अनुपात
और कुंवारेपन झेलने को विवश होगा पुरुष!
न बस सकेगा एक सुखद परिवार
और हिल कर रह जायेगी
रिश्तों की बुनियाद !
बेटियां घर को बसातीं
बेटियों से बनता परिवार है
और बेटियों से ही रचता नया संसार है
आज की बेटी--
न जाने कितने नये रिश्तों की जननी है
बेटी ही तो कल की भाभी,नन्द या पत्नी है
उसने ही जन्म दिया है
राम,रहीम, गांधी को
ईसा, कृष्ण, गौतम को
उसी ने जने,
या फिर
प्रशासक, अभियंता या पत्रकार ।
वही तो जननी है
राधा, सीता, रुक्मिणी की
या फिर
द्रौपदी,इन्दिरा,कुन्ती की ।
फिर उनपर आज इतना जुल्म क्यों है?
क्यूंकि यदि घटती रही यूं ही बेटियां
तो, बिगड़ जायेगा स्त्री-पुरुष अनुपात
और कुंवारेपन झेलने को विवश होगा पुरुष!
न बस सकेगा एक सुखद परिवार
और हिल कर रह जायेगी
रिश्तों की बुनियाद !