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बेटी दिवस विशेष कविता: अधिकार (कल्पना गुप्ता "रतन", जम्मू एंड कश्मीर)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार कल्पना गुप्ता "रतन" की एक कविता  जिसका शीर्षक है “अधिकार”:

आओ   करते   हैं  बात  उस  रीत  की
जो बजता था प्यार से  उस  संगीत की
नींव पर  टिकी थी जो केवल  प्रीत की।
 
किया  जाता  था  जहां  बेटियों ‌को प्यार
कौन  कहता  ना था बेटियों का अधिकार
अपनों से प्रेम की होती उन पे‌ बरसात थी।
 
विवाह बेटी  का था होता पिता की शान
रखती  बेटियां  थी पिता  की  आन बान
विदाई संघ संस्कारों  की  होती बात थी।
 
बेटियां जा  वहां थी बनाती मीनार ए प्यार
बढ़ता बेटियों का उनके ससुराल में सत्कार
जब जाती मायके से प्यार  की सौगात थी।
 
पहले  होता था  प्यार भी और  अधिकार भी
नानकियों के घर की नेग, उसके  इंतजार की
मामा के आने से आ जाती जो उस बहार की।
 
हक की लड़ाई से जो  बन  गई ‌है अब दिवार
ना   रहा  प्यार, छूट  गया  जो ‌ था अधिकार
बेटियां अब भी फंस के रह गई है मझदार की।