आओ करते हैं बात उस रीत की
जो बजता था प्यार से उस संगीत की
नींव पर टिकी थी जो केवल प्रीत की।
कौन कहता ना था बेटियों का अधिकार
अपनों से प्रेम की होती उन पे बरसात थी।
रखती बेटियां थी पिता की आन बान
विदाई संघ संस्कारों की होती बात थी।
बढ़ता बेटियों का उनके ससुराल में सत्कार
जब जाती मायके से प्यार की सौगात थी।
नानकियों के घर की नेग, उसके इंतजार की
मामा के आने से आ जाती जो उस बहार की।
ना रहा प्यार, छूट गया जो था अधिकार
बेटियां अब भी फंस के रह गई है मझदार की।