पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार पल्लवी जोशी की एक कविता जिसका शीर्षक है “मुझसे पहली सी मुहब्बत मेरे महबूब ना मांग”:
मुझसे पहली सी मोहब्बत मेरे महबूब न मांग
दर बदर हूं मै अंदर से ,बिखर गए मेरे शौक तमाम
मेरा जो था सब उसके नाम कर आई
मेरा दामन है अब बस खाली खाली
चादर प्रीत की तू मत बुनवा मुझसे, उस मै कबका उधेड़ आई
मेरे माजी का एक फैसला मेरे मुस्तकबिल पर लगा दिया सवाल
मुझसे पहली सी मुहब्बत मेरे महबूब ना मांग -2
मैं नहीं हूं वो कश्ती जो बह जाऊं तेरे पानियों की बहाव में
ना रही वो शजर जो खिल जाऊं तेरे मौसमों की बहार में
मै वो भी नहीं जिसक तलाश मुझपे ख़तम होती है
मैं बिखर चुकी हूं शराब सी मुझे अब अपने सिशे में ना उत्तार
मुझसे पहली सी मुहब्बत मेरे महबूब ना मांग-2
तू चाहेगा मुझसे फूल कोई पर सारी बागवान मै उसे नोच कर से आई
तू मांगेगा वक़्त मुझसे मै अपने सारी सासें उसके नाम कर आई
ख्वाहिश होगी तेरी मेरे पहलू में रहने की पर अपनी सारी आदाए उसे सौप आई
तू क्या करेगा मुझे आधे - अधूरे हासिल कर जब मेरी सुर में छिड़ी है उसकी राग
मुझसे पहली सी मुहब्बत मेरे महबूब ना मांग -2
मेरे जात पर अब बदगुमानी का दाग लगा
सब कुछ हो सकता है पर मेरी साहिल में किसी की कश्ती को किनार ना मिलेगा
लौटने कि ना आरजू अब ना पाने का शौक है
एक सफ़र है जिंदगी की बस जिस्म को पिघलाना है
तू बस इतना समझ ले मुझे अब नहीं है रंज और गम का आभास
मुझसे पहली सी मुहब्बत मेरे महबूब ना मांग
दर बदर हूं मै अंदर से ,बिखर गए मेरे शौक तमाम
मेरा जो था सब उसके नाम कर आई
मेरा दामन है अब बस खाली खाली
चादर प्रीत की तू मत बुनवा मुझसे, उस मै कबका उधेड़ आई
मेरे माजी का एक फैसला मेरे मुस्तकबिल पर लगा दिया सवाल
मुझसे पहली सी मुहब्बत मेरे महबूब ना मांग -2
मैं नहीं हूं वो कश्ती जो बह जाऊं तेरे पानियों की बहाव में
ना रही वो शजर जो खिल जाऊं तेरे मौसमों की बहार में
मै वो भी नहीं जिसक तलाश मुझपे ख़तम होती है
मैं बिखर चुकी हूं शराब सी मुझे अब अपने सिशे में ना उत्तार
मुझसे पहली सी मुहब्बत मेरे महबूब ना मांग-2
तू मांगेगा वक़्त मुझसे मै अपने सारी सासें उसके नाम कर आई
ख्वाहिश होगी तेरी मेरे पहलू में रहने की पर अपनी सारी आदाए उसे सौप आई
तू क्या करेगा मुझे आधे - अधूरे हासिल कर जब मेरी सुर में छिड़ी है उसकी राग
मुझसे पहली सी मुहब्बत मेरे महबूब ना मांग -2
सब कुछ हो सकता है पर मेरी साहिल में किसी की कश्ती को किनार ना मिलेगा
लौटने कि ना आरजू अब ना पाने का शौक है
एक सफ़र है जिंदगी की बस जिस्म को पिघलाना है
तू बस इतना समझ ले मुझे अब नहीं है रंज और गम का आभास
मुझसे पहली सी मुहब्बत मेरे महबूब ना मांग